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कलाम
दूद-ए-दिल मेरा न चश्म-ए-कम से देख ऐ रश्क-ए-महपहन होगा ये अगर तू आसमाँ हो जाएगा
ग़ुलाम अ’ली रासिख़
कलाम
सुख़न-सनजाँ साहिब-ए-दिल है क़द्र उस की समझते हैंबदल है ये मिरा दीवान दीवान-ए-नज़ीरी का
ग़ुलाम अ’ली रासिख़
कलाम
मैं शम-ए-फ़रोज़ाँ हूँ मैं आतिश-ए-लर्ज़ां हूँमैं सोज़िश-ए-हिज्राँ हूँ मैं मंज़िल-ए-परवानः
वासिफ़ अली वासिफ़
कलाम
क़ुर्बान-ए-फ़ना एक तजल्ली-ए-तेरी होएज़ुल्मत-कदा-ए-हस्तती-ए-मौहूम से निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
ग़ुबार-ए-आस्ताँ हर रोज़ झाड़े मेहर-ए-मिज़्गाँ सेबिछाए माह हर शब चादर-ए-शफ़्फ़ाफ़ का'बा में
हाजी वारिस अली शाह
कलाम
लाए थे मुल्क-ए-अदम से साथ अपने नक़्द-ए-दिलअब यहाँ से उस के बदले दाग़-ए-फ़ुर्क़त ले चले
औघट शाह वारसी
कलाम
रोती है शबनम कि नैरंग-ए-जहाँ कुछ भी नहींहँस रहे हैं गुल कि रंग-ए-बोस्ताँ कुछ भी नहीं
शाह वारिस अली
कलाम
डरे गुनह से बला हमारी अज़ल के दिन से जनाब-ए-बारीहमारे आक़ा-ए-नामवर को शफ़ीअ'-ए-महशर बना चुके हैं