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कलाम
दिया होता किसी को दिल तो होती क़द्र भी दिल कीहक़ीक़त पोछिए जा कर किसी बिस्मिल से बिस्मिल की
अज्ञात
कलाम
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ कावो इक गुलदस्ता है हम बे-ख़ुदों के ताक़-ए-निस्याँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
चला आहिस्ता-आहिस्ता तिरे कलिमा से दम मेरानज़्अ' में कैसे भूलूँ है वज़ीफ़ा दम-बदम मेरा
मोहम्मद बादशाह क़दीर
कलाम
मोहम्मद बादशाह क़दीर
कलाम
तिरे जल्वे की बढ़ती है लताफ़त चश्म-ए-गिर्यां मेंकि घुल कर अश्क में छुपता है वो दामान-ए-मिज़्गाँ में
मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर
कलाम
इस क़दर आँखें मिरी महव-ए-तमाशा हो गईंपुतलियाँ पथरा के आख़िर संग-ए-मूसा हो गईं
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
कलाम
मैं भी अदना साक़िया तेरे तलब-गारों में हूँचौदहवीं का चाँद तू है मैं तिरे तारों में हूँ
मोहम्मद बादशाह क़दीर
कलाम
नाज़ाँ शोलापुरी
कलाम
नाला-ए-दिल लब से जिस दिन आश्ना हो जाएगादेख लेना तुम कि 'आलम क्या से क्या हो जाएगा
अब्दुल क़ादिर शरफ़
कलाम
अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हमवो ख़ुद करें निगाह तो फिर क्या करेंगे हम