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कलाम
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला'इश्क़ अपने मुजरिमों को पा-ब-जौलाँ ले चला
हसन रज़ा बरेलवी
कलाम
शोर शहर ते रहमत वस्से, जित्थे बाहू जाले हूबाग़बाँ दे बूटे वांगू, तालिब नित्त सँभाले हू
सुल्तान बाहू
कलाम
एक 'आलम है कि मक़्तल में है क़ातिल की तरफ़धार ख़ंजर की फ़क़त ’आशिक़-ए-बे-दिल की तरफ़
आसी गाज़ीपुरी
कलाम
तन मैं यार दा शहर बणाया दिल विच ख़ास मोहल्ला हूआण अलिफ़ दिल वस्सों कीती होई ख़ूब तसल्ला हू
सुल्तान बाहू
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है