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कलाम
न सवाल है तख़्त-ओ-ताज का न क़सम से ज़र का ख़याल हैमिरे चारा-गर मिरे मेहरबाँ तिरे एक का सवाल है
फ़राज़ वारसी
कलाम
वली वारसी
कलाम
निकल सकता नहीं पेचीदा-दाम हुस्न-ओ-महबूबीबड़ा ही पेच-कामिल है ’अज़ीज़-ओ-ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ का
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
कही है ये ग़ज़ल 'सीमाब' अक़्द-ए-दर्द पर मैं नेनिहाँ रंगीनी-ओ-तमकीं है अल्फ़ाज़-ओ-मआ'नी में
सीमाब अकबराबादी
कलाम
'अजब ए'तिबार-ओ-बे-ए'तिबारी के दरमियान है ज़िंदगीमैं क़रीब हूँ किसी और के मुझे जानता कोई और है
सलीम कौसर
कलाम
रातीं ख़्वाब न तिन्हाँ हरगिज़ जेड़े वाले हूबाग़ाँ वाले बूटे वाँगूँ तालिब नित्त सँभाले हू