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कलाम
ग़ुबार-ए-आस्ताँ हर रोज़ झाड़े मेहर-ए-मिज़्गाँ सेबिछाए माह हर शब चादर-ए-शफ़्फ़ाफ़ का'बा में
हाजी वारिस अली शाह
कलाम
रोती है शबनम कि नैरंग-ए-जहाँ कुछ भी नहींहँस रहे हैं गुल कि रंग-ए-बोस्ताँ कुछ भी नहीं
शाह वारिस अली
कलाम
क़ुर्बान-ए-फ़ना एक तजल्ली-ए-तेरी होएज़ुल्मत-कदा-ए-हस्तती-ए-मौहूम से निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
ढूँढ उस जगह किशवर-ए-’अली बाब-ए-’इल्म है’उक़्दा वहीं से होवे है हल मुश्किलात का
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
मैं बुरा हूँ या भला हूँ मेरी लाज को निभानामुझे जानता है साजन तेरे नाम से ज़माना
मोहम्मद अली ज़ुहूरी
कलाम
जो हैं नव-वारिदान-ए-सहन-ए-गुलशन उन को दा'वत देन छेड़ ऐ फ़स्ल-ए-गुल दीवाना-ए-सर-दर-गरेबां को
सीमाब अकबराबादी
कलाम
वो ग़रूर-ए-हुस्न-ए-ख़ुद-सर-ओ-सर-ए-नियाज़ 'कामिल'कोई मुस्कुरा रहा है मिरी ज़िंदगी बदल कर