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कलाम
दो दिन की तन-आसानी के लिए तक़दीर का शिकवा कौन करेरहना ही नहीं जब दुनिया में दुनिया की तमन्ना कौन करे
शाह महमूदुल हसन
कलाम
रहने दो चुप मुझे न सुनो माजरा-ए-दिलमैं हाल-ए-दिल कहूँ तो अभी मुँह को आए दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब
कलाम
अज़ल में जो सदा मैं ने सुनी थी कैफ़-ए-मस्ती मेंवही आवाज़ अब तक सुन रहा हूँ साज़-ए-हस्ती में
ख़ादिम हसन अजमेरी
कलाम
दुर्र-ए-मज़मूँ की झड़ी रहती है क्यूँ फिर ये 'हसन'गर मिरी तब-ए'-रवाँ अब्र-ए-गुहर-बार नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब
कलाम
रहता हूँ बे-लब-ओ-दहन रोज़-ओ-शब उन से हम-सुख़नजान-ए-सुख़न है ऐ 'हसन' ये मिरी ख़ामुशी नहीं