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कलाम
हुस्न-ए-मुत्लक़ का अज़ल के दिन से मैं दीवाना थाला-मकाँ कहते हैं जिस को वो मिरा काशाना था
अमीर मीनाई
कलाम
दुश्मनों का फ़िक्र-ए-ग़म मुज्झ को नहीं मुतलक़ 'नियाज़'हाथ में क़ब्ज़ा है मेरे क़ादरी तलवार का
नियाज़ वज़िरबादी
कलाम
है ज़ात कंज़-ए-मख़्फ़ी ज़ात-ए-बक़ा-ए-मिर्ज़ापाया जो 'इल्म-ए-मुतलक़ अपने में आए मिर्ज़ा
शाह सिद्दीक़ सौदागर
कलाम
ज़िंदगी का कुछ मज़ा मुतलक़ नहीं मुझ को 'नियाज़'मौत तो आती नहीं अब ज़हर खाना ही पड़ा
नियाज़ वज़िरबादी
कलाम
तिरा ही वज्ह-ए-मुतलक़ है वुजूहात है 'आलमतू ही यकता है ऐ जान-ए-जहाँ सारी ख़ुदाई में
शाह सिद्दीक़ सौदागर
कलाम
अपनी हस्ती से गुज़र कर हस्त-ए-मुतलक़ होंगे हमकहते कहते अल-फ़ना हम अल-बक़ा कहने को हैं
ख़्वाजा नासिरुद्दिन चिश्ती
कलाम
इस चमन की हर कली हर फूल हर हर रंग मेंहुस्न-ए-मुत्लक़ का करिश्मा देखता जाता हूँ मैं
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
कलाम
जब मुक़य्यद से सू-ए-मुतलक़ गई अपनी निगाहजो कि पाया था वो सब खोया नज़र के सामने