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कलाम
मिरे दिल की हर इक रग ख़ूँ-चकाँ मा'लूम होती हैतमन्नाओं की दुनिया गुलिस्ताँ मा'लूम होती है
माहिरुल क़ादरी
कलाम
सच है शह-रग से क़रीं अल्लाह मियाँ है रे मियाँतुझ में ये माद्दा समझने का कहाँ है रे मयाँ
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
फ़ना का जाम ऐ साक़ी मैं पी-पी लूँ तू भर-भर देबक़ा की मय से आँखें मिस्ल-ए-नर्गिस-ए-मस्त कर-कर दे
अलाउद्दीन जलाली
कलाम
वो जो एक दम को भी आ गए रग-ओ-पै में मेरी समा गएवो कुछ ऐसी आग लगा गए कि जला के मुझ को बुझा गए
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
बहर-जल्वा न रुस्वा कर मज़ाक़-ए-चश्म-ए-हैराँ कोयही बातें निगाहों से गिरा देती हैं इंसाँ को