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सुनते हैं कि मिल जाती है हर चीज़ दु'आ सेइक रोज़ तुम्हें माँग के देखेंगे ख़ुदा से
सुनते हैं कि महशर में फिर जल्वा-गरी होगीक्या शाख़-ए-तमन्ना फिर इक बार हरी होगी
वफ़ा सुनाती है दिल के क़िस्से कभी ज़बाँ से कभी नज़र सेजो बात लब तक न आ सकी थी नज़र ने कह दी मिरी नज़र से
दम उलट जाए न सय्याद का सुनते सुनतेदर्द-अंगेज़ न कर ऐसे तु नाले बुलबुल
मरीज़-ए-मोहब्बत उन्हीं का फ़साना सुनाता रहा दम निकलते निकलतेमगर ज़िक्र शाम-ए-अलम का जब आया चराग़-ए-सहर बुझ गया जलते जलते
है दम-ए-आख़िर सिरहाने लोरियाँ देती है मौतसुनते-सुनते काश सो जाएँ तिरा अफ़्साना हम
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगीसुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
वो नहीं सुनते हमारी क्या करेंमाँगते हैं हम दिया जिन के लिए
जिधर जाते हैं सुनते हैं हाय हायइलाही ये सौत-ओ-सदा दूर हो
ख़ुद ख़ुदा बेवासता दे ये हमारा मुँह कहाँवास्ता सरकार हैं बेवासता मिलता नहीं
मस्ती में फ़रोग़-ए-रुख़-ए-जानाँ नहीं देखासुनते हैं बहार आई गुलिस्ताँ नहीं देखा
एक चुल्लू में बहुत 'दाग़' बहक उठते थेआज सुनते हैं निकाले गए मय-ख़ाने से
सुनते हैं जो बहिश्त की तारीफ़ सब दुरुस्तलेकिन ख़ुदा करे वो तिरा जल्वा-गाह हो
आवाज़ा शफ़ा'अत का नबी के जो न सुनते'इस्याँ पे 'वसी' को कभी इसरार न होता
सवाल सुनते ही साएल ने ये जवाब दियाजहाँ में कोई नहीं है मिरा ख़ुदा के सिवा
जफ़ा-कारो मिरी मज़लूम ख़ामोशी पे सुनते होठहर जाओ ज़रा दम लो अभी फ़रियाद करता हूँ
ज़िक्र अपना आज-कल सुनते हैं 'औघट' हर कहींअपनी बर्बादी का भी मशहूर क़िस्सः हो गया
सुनते हैं रिंद होते तकल्लुफ़ से बे-नियाज़साग़र को तोड़ मुँह से सुराही लगा के पी
सुनते ही जब नग़्मा-ए-इन्ना-एलैहे-राजे'ऊन'आशिक़ों की ज़ौक़-ए-हस्ती में निकल जाती है रूह
हर गिले पर मुझे गाली कोई देते शब-ए-वस्लकुछ मिरी सुनते कुछ आप अपनी सुनाते जाते
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