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कलाम
अब्र है जाम है मीना है मय-ए-गुल-गूँ हैहै सब अस्बाब-ए-तरब साक़ी-ए-गुलफ़ाम नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
या मोहम्मद तेरा 'मैकश' तेरी महफ़िल तेरा जामहासिल-ए-मस्ती भी तू है मस्ती-ए-हासिल भी तू
मयकश अकबराबादी
कलाम
कहाँ अब वो सुरूर-ए-दौर-ए-अव्वल बज़्म-ए-हस्ती मेंजिसे कहते हैं दुनिया है वो ऐ 'मैकश' ख़ुमार अपना
मयकश अकबराबादी
कलाम
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ानाकब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
अहमद रज़ा ख़ान
कलाम
इन्ही ख़ुश-गुमानियों में कहीं जाँ से भी न जाओवो जो चारागर नहीं है उसे ज़ख़्म क्यूँ दिखाओ
अहमद फ़राज़
कलाम
ख़ानक़ाह-ए-चिश्त में जिस ने क़दम पहला रखादूसरा उस का क़दम फिर अर्श-ए-बाला पर हुआ