परिणाम "लिबास"
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कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़िर नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ मेंकि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
कहीं वह दर लिबास-ए-मा'शूक़ाँबर-सर-ए-नाज़ और अदा देखा
ये लिबास-ए-ज़ीस्त ऐसा रंग देता-क़ियामत हो न मैला रंग दे
वही चराग़ वही गुल वही क़मर वही बर्क़नए लिबास में देखा उसे जहाँ देखा
दिल में यूँ रंग-ए-फ़ना-ओ-फ़क़्र देतन पे है जैसे लिबास-ए-गेरुआ
क्या क्या लिबास शान-ए-करम के हैं देखनाख़ाक-ए-शिफ़ा हुई कहीं आब-ए-बक़ा हुई
ये इरादा है पहन कर इक गदायाना-लिबासख़ल्क़ को तड़पाएँ कह-कह कर तिरा अफ़्साना हम
ये हमीं थे जिन के लिबास पर सर-ए-रह सियाही लिखी गईयही दाग़ थे जो सजा के हम सर-ए-बज़्म-ए-यार चले गए
ये भी कोई शान-ए-नुमूद है कि ख़याल ही में वुजूद हैतू हिजाब-ए-लाला-ओ-गुल में बस तू लिबास-ए-सर्व-ओ-समन में आ
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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