Font by Mehr Nastaliq Web

सेहरा

सेहरा अक्सर फूलों का या सुनहरी तारों का होता है जो दुल्हे के सर पर बाँधा जाता है। उसकी लटकनें दुल्हे के चेहरे पर लटकती रहती हैं और उन से दुल्हे का चेहरा छुपा होता है। सूफ़ी ख़ानक़ाहों में जब किसी सज्जादानशीन की शादी होती है तब क़व्वाल सेहरा पढ़ते हैं।

-1953

मीलाद-ए-अकबर के मुसन्निफ़ और ना’त गो-शाइ’र

-1927

रुहानी शाइ’र और “वारिस बैकुंठ पठावन” के मुसन्निफ़

1829 -1900

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

1876 -1936

मा’रूफ़ ना’त-गो शाइ’र और ''बे-ख़ुद किए देते हैं अंदाज़-ए-हिजाबाना' के लिए मशहूर

1855 -1936

ख़ैराबाद के मा’रूफ़ शाइ’र

बोलिए