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दारा शुकोह और बाबा लाल बैरागी की वार्ता

दारा शिकोह

दारा शुकोह और बाबा लाल बैरागी की वार्ता

दारा शिकोह

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    नोट - 22 नवंबर 1653 को जब कंधार में असफल होने के बाद हारा हुआ शहजादा दारा शुकोह लाहौर पहुंचा। दारा शिकोह तीन सप्ताह (दिसंबर 1653 के मध्य तक ) लाहौर में ही ठहरा। आगे चलकर होने वाली एक तवील सात दिनों की वार्ता मे जिन दो महान हस्तियों ने हिस्सा लिया वो हस्तियाँ थीं शहज़ादा दारा शुकोह और बाबा लालदास बैरागी।

    पंजाब में बाबा लाल नाम के चार संत हुये हैं

    1- पिंड दादन ख़ान के निवासी थे सूखी लकड़ी को हरा भरा कर देने की वजह से इन्हें टहली वाला या टहनी वाला भी कहते हैं।

    2- भेराम्यानी अथवा भेरा नाम के किसी शहर के रहने वाले थे।

    3- गुरुदासपुर के रहने वाले थे और गुरुदासपुर मे इनका एक मठ भी है।

    4 मालवा प्रांत के बाबा लाल बैरागी जिनसे दारा शिकोह की वार्ता प्रसिद्ध है।

    यह चौथे बाबा लाल दास जाति के क्षत्रिय थे। इनका जन्म मालवा में जहांगीर के शासन काल मे सन 1590 में हुआ था।

    दारा शुकोह और बाबा लाल बैरागी के बीच कई वार्ताएं( conversations) हुईं इन वार्ताओं को दारा शुकोह के दो लिपिकों ने लिपिबद्ध किया। ये लिपिक थे जाधव दास राय और चंद्रभान ब्राह्मण। यह संवाद सात दिन तक चलता रहा और प्रतिदिन दो मजलिसें (अधिवेशन ) होती रहीं। बाबा लाल उस वक़्त कोटल मेहरा मे निवास कर रहे थे। इन सात वार्तालापों में पहला ज़फ़र ख़ान के बाग़ में हुआ था। दूसरा मुक़ालमा बादशाही बाग के सराय अनवर महल में हुआ। तीसरा और छठा मुक़ालमा धनबाई के बाग़ में हुआ। चौथा मुक़ालमा शाहगंज के पास आसफ़ ख़ान के महल में हुआ, पाँचवाँ निकलानपुर के पास गावान के शिकारगाह में हुआ और सातवाँ जो तीन दिनों तक चला वह किसी गुप्त स्थान पर हुआ था। कुछ लोगों का कहना है की नियुला में चंद्रभान ब्राह्मण के घर पर यह अंतिम गुप्त वार्ता हुयी थी।

    ( कहते हैं यहाँ किए गए वार्तालाप के समय एकाध चित्र भी बना लिए गए हैं जो आज भी उपलब्ध हैं। ये वार्तालाप उर्दू में हुए थे। इन दोनों के प्रश्नोत्तर असरार मारिफ़त नामक एक फारसी किताब में संग्रहीत हैं जो सन 1969 में लाहौर से प्रकाशित हो चुकी है। इनका एक संग्रह नादिर उन निकात के नाम से भी पाया जाता है जो वास्तव में चंद्रभान ब्राह्मण द्वारा किया हुआ फ़ारसी तर्जुमा है। यह किताब स्वामी भगवदाचार्य द्वारा संपादित और दरबार श्री ध्यानपुर (ज़िला –गुरदासपुर ) द्वारा 1967 में उमानुल जवाहर यानी प्रश्नोत्तर प्रकाश नाम से हिन्दी में प्रकाशित हैं। इसमें सातों अधिवेशनों के प्रश्नोत्तर संग्रहीत हैं

    ये प्रश्न एक शहजादे के प्रश्न हैं जो पूरी सहानुभूति से एक संत से किए गए हैं, जिनका वह सम्मान करता है और जो एक दोस्त की तरह उसका जवाब देता है। इस संवाद में सर्वथा मौलिक स्थल वो हैं जिनमें दारा शुकोह यह प्रयास करता है कि मुसलमान के रूप में उसके धार्मिक अनुभव का विश्लेषण बाबलाल हिन्दू पारिभाषिक शब्दों में करें।

    यहाँ इस संवाद के प्रमुख 26 अंश पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं , पूरी वार्ता का अनुवाद शीघ्र प्रस्तुत करने का प्रयास जारी है .

    1- दारा शुकोह नाद एवं वेद में क्या अंतर है ?

    बाबा लाल वही अंतर है जो आदेश देने वाले राजा और उसके द्वारा दिये गए आदेश में है पहला नाद है, दूसरा वेद !

    2-दारा शुकोह चन्द्र का प्रकाश क्या है, उसमे काली जगह क्या है तथा उसके उजलेपन का क्या कारण है ?

    बाबा लाल चाँद मे अपना कोई प्रकाश नहीं है यह सर्वथा रंग हीन है जिसपर सूर्य की किरणें पड़ती हैं। इसकी स्वेतता पृथ्वी के समुद्रों का प्रतिबिम्ब है तथा इसकी काली जगह भूमि का प्रतिबिम्ब है।

    3-दारा शुकोह यदि यह प्रतिबिम्ब की बात है, तो यह सूर्य पर उसी मात्रा में क्यों नहीं प्रकट होता है?

    बाबा लाल -सूर्य अग्नि के गोले की भाँति है और चन्द्र जल के गोले की भाँति है। प्रतिबिम्ब पानी में पड़ता है, परन्तु अग्नि में नहीं।

    4-दारा शुकोह हिन्दुओ में मूर्ति-पूजा का क्या सिद्धांत है? किसने इसको विहित किया है ?

    बाबा लाल हृदय को बल देने के लिए यह आलंबन रूप से स्थापित की गई है। जिसको वास्तविकता का परिचय है, वह इसी कारण से इस बाह्य रूप के विषय में उदासीन है। परन्तु जब मनुष्य को गूढ़तम वास्तविकता का ज्ञान नहीं होता है, वह बाह्य रूप में आसक्त रहता है। यही हाल कुँवारी लड़कियों का है जो गुड़ियों से खेलती हैं। विवाहित महिलायें विवाह होने पर उसका त्याग कर देती हैं यह भी एक प्रकार की मूर्ति-पूजा है। जब तक मनुष्य इस भेद को नहीं जान जाता है वह बाह्य रूप से आसक्त रहता है। जब मनुष्य आन्तरिक अर्थ जान लेता है, वह इसको छोड़ देता है।

    5-दारा शुकोह स्रष्टा तथा सृष्टि में क्या अन्तर है? मैंने यह प्रश्न किसी से किया था। उनके अन्तर को उस अन्तर से तुलना करके उसने उत्तर दिया था जो वृक्ष तथा उसके बीज में है। यह ठीक है या नहीं?

    बाबा लाल स्रष्टा सागर की भाँति है और सृष्टि पदार्थ जलपूर्ण पात्र के सदृश। पात्र तथा सागर में जल तो एक ही है, परन्तु दोनों आधारों में बहुत बड़ा भेद है। बात यह है कि स्रष्टा स्रष्टा है और सृष्टि सृष्टि है।

    6-दारा शुकोह परमात्मा क्या है? तथा जीवात्मा क्या है? और फिर जीवात्मा परमात्मा के साथ एक कैसे हो जाता है?

    बाबा लाल मदिरा जल से बनती है, परन्तु यदि वह पृथ्वी पर उँडेल दी जाये, तो अशुद्धता, मद तथा दूषण जो उसमे है, उसके तल पर रह जाते हैं तथा जल पृत्वी में प्रवेश कर जाता है और शुद्ध जल रहता है। यही बात है उस आदमी की जो अब भी जीवात्मा है। यदि वह अपने अस्तित्व के साथ पाँच (ज्ञान) इन्द्रियों को भी छोड़ दे तो वह पुनः ईश्वर से मिल जायेगा।

    7-दारा शुकोह जीवात्मा तथा परमात्मा में क्या भेद है?

    बाबा लाल सार रूप से कोई भेद नहीं है।

    8-दारा शुकोह तब यह कैसे हो सकता है कि दण्ड तथा पुरस्कार दोनों का स्पष्ट अस्तित्व है?

    बाबा लाल यह चिह्न है जो शरीर के संस्कार द्वारा अंकित हो जाता है। गंगा तथा गंगाजल में यही भेद है।

    9-दारा शुकोह इस उदाहरण से कौन सा भेद उद्दिष्ट है?

    बाबा लाल यह भेद अनेकांगी तथा असीम है। वास्तव में यदि गंगाजल एक पात्र में है और उसमें मदिरा की एक बूंद टपक पड़ती है, तो पात्र का समस्त जल इतना ही दूषित माना जाता है जितना मदिरा। इसके विपरीत यदि मदिरा के एक लाख पात्र भी गंगा में डाल दिये जायें, तो गंगा गंगा ही रहेगी। इस प्रकार परमात्मा पूर्ण शुद्ध है तथा आत्मा (जीवात्मा) इस निम्नस्थ अस्तित्व से प्रभावित हो जाता है। परन्तु जब तक इसका वास अस्तित्व में है, वह सदैव आत्मा (जीवात्मा) ही रहेगा।

    10-दारा शुकोह हिन्दुओं की पुस्तक में यह कहा गया है कि जो वाराणसी (काशी) में मृत्यु को प्राप्त होते हैं, वे निश्चय ही स्वर्ग को जाते हैं। यदि बात ऐसी ही है, तो इस पर आश्चर्य हो सकता है कि निरन्तर तपस्वी तथा पापी की गति में समानता है।

    बाबा लाल वास्तव में मनुष्य-जीवन का संपुष्ट करना ही काशी है। जो अमर जीवन में संपुष्ट हो जाता है वह निश्चय मुक्ति (मोक्ष) को प्राप्त करता है।

    11-दारा शुकोह चूंकि प्रत्येक मनुष्य को जीवन प्राप्त हुआ है, तो क्या प्रत्येक मनुष्य को मोक्ष प्राप्त हो जायेगा?

    बाबा लाल महापुरुष को छोड़कर किसी के जीवन (अस्तित्व) में पुष्टीकरण नहीं होता है, परन्तु वह केवल इच्छाओं में जकड़ जाता है और इच्छा वास्तविक जीवन से भिन्न वस्तु है (ख्वाहिश अज़ वजूदअलाहिदा अस्त)। इच्छा से इच्छा की उत्पत्ति होती है और इस प्रकार मनुष्य मोक्ष से वंचित रह जाता है।

    12-दारा शुकोह यदि यह ज्ञात हो जाये कि मुझको फकीर का वस्त्र हृदय से पसन्द है, तो अपने गौरव-वृद्धि के निमित्त मनुष्य दरवेश (फकीर) का वस्त्र धारण कर लेंगे, परन्तु अन्त में उनके वास्तविक स्वभाव का पता चल जायेगा और उनके हृदयों पर इसका कठोर प्रभाव पड़ेगा। राजा को इससे दूर रहना चाहिये।

    बाबा लाल कोई भी उस मार्ग को बन्द करने में (तपस्वी वस्त्र के धारण करने का मार्ग) कभी भी सफल होगा जिस पर ईश्वर भक्त चलते हैं। जैसे कि इस आशा से कि उसको पारस पत्थर मिल जायेगा, एक मनुष्य पत्थर के टुकड़ों को इक्ट्ठा करता रहता है, वह बिना विवेक के ऐसा करने से नहीं रोका जा सकता है। दरवेश जो दरवेश के वस्त्र में सभा को जाता है लोग उसका सेवा-सत्कार करते हैं औऱ यह स्वयं ही पुरस्कार है।

    13-दारा शुकोह हिन्दु विचार के अनुसार ब्रजभूमि (वृन्दावन) में ही श्री कृष्ण अपने निज रूप को गोपियों को निमित्त प्रकट करते है। यह रहस्यमय रूप मनुष्यों के उपयुक्त है या नहीं?

    बाबा लाल यह रूप उनके अनुकूल होगा जो लौकिक जीवन में आसक्त हैं, क्योंकि यदि सच्चा रूप उनको दृष्टिगत हो जाये, तो वे मर जायेगे तथा पुरस्कार के बदले दण्ड के भागी होंगे। इसको सहन केवल फकीर ही कर सकते हैं जिनकी समस्त इच्छाओं का दमन उनके शरीर में हो गया है और इतनी अच्छी तरह कि उनके हृदय किसी कारण भी किसी दिशा में विचलित नहीं होते हैं।

    14-दारा शुकोह कभी कभी यह कहा गया है कि ब्रह्म-संयोग में तत्व (ज़ात) की प्राप्ति हो जाती है। यह कैसे कह सकते है कि इस संयोग द्वारा ब्रह्मतत्व की प्राप्ति होती है?

    बाबा लाल जब लोहे के टुकड़े को अग्नि में (तपाकर) लाल करते हैं और जब इसका रंग अग्नि का हो जाता है, तब इसका व्यवहार भी अग्नि के व्यवहार की भाँति हो जाता है।

    15-दारा शुकोह यह प्रथा है कि मुसलमान मरने पर गाड़ दिया जाता है और हिन्दू जला दिया जाता है। परन्तु जब दरवेश एक हिन्दू के वस्त्र में अपने प्राण का विसर्जन करता है, तब उसके साथ क्या होगा?

    बाबा लाल सर्वप्रथम- गाड़ना या जलाना ये भौतिक शरीर से सम्बन्धित उपाय है। दरवेश को अपने शरीर की चिन्ता नहीं रहती है। उसने अपने शरीर का त्याग इस कारण से किया है कि वह आनन्द के सागर में प्रवेश कर जाये जो ईश्वर-बोध में प्राप्त होता है। वह शारीरिक अस्तित्व (हस्ती) के क्षेत्र को त्याग देता है जिससे कि वह उस अमर निवास को प्राप्त हो जाये जिसका कोई प्राकृतिक अस्तित्व नहीं है जैसे साँप उस केंचुल की कोई चिन्ता नहीं करता है जिसको उसने छोड़ दिया है और अपने बिल में घुस जाता है- उसी प्रकार दरवेश अपने शरीर की कोई चिन्ता नहीं करता है। मनुष्य जो कुछ भी चाहे उसके प्रति कर सकते हैं।

    16-दारा शुकोह एक मनुष्य ने मुझसे कहा- “पाप कम करो।” मैंने उससे पूछा- “इसका क्या तात्पर्य है- कम पाप (कम आज़ार)।” उसने उत्तर दिया-“पाप का अल्पांश (अन्दक आज़ार)”। मैंने कहा- “पाप करना तो पाप करना है। इसका अंश क्या है- इससे कोई वास्ता नहीं।” इस की माप कैसे हो सकती है?

    बाबा लाल हम उसको कोई चोट नहीं पहुँचा सकते हैं जो हम से बड़ा या अधिक बली है। जिसमें समान बल है वह प्रतिकार कर सकता है। परन्तु हम उसको कोई चोट पहुंचाये जो हम से निर्बल है। ‘पाप कम करो’ इस उपदेश से यही सूचित होता है।

    17-दारा शुकोह स्वतंत्र इच्छा ही ईश्वर है (माबूद हकीकी) पुस्तकों में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक मनुष्य को स्वतन्त्र इच्छा दी गई है। हम इसको कैसे माने?

    बाबा लाल स्वतन्त्र इच्छा ईश्वर है जिसका प्रभुत्व विशाल है। समस्त अस्तित्व में यह वर्तमान है।

    18-दारा शुकोह दोनों दशाओं में हमको कैसे इसका विश्वास हो?

    बाबा लाल जब शिशु माता के पेट में होता है, उसमें स्वतन्त्र इच्छा दैवी विधि है जो उसकी रक्षा करती है तथा उसके विकास में उसका पोषण करती है, क्योंकि वहां पर उस समय कोई अन्य व्यक्ति होता ही नहीं है। जब शिशु संसार में प्रवेश करता है, उस स्वतन्त्र इच्छा का अर्ध भाग वह है जो प्राणियों के प्रति अपनी उदारता तथा कृपा के कारण माता की छाती में दूध पैदा करती है। (अर्थात् ईश्वर के साथ रहती है)। द्वितीय अर्ध भाग शिशु में प्रवेश कर जाता है, क्योंकि जब शिशु रोता है, उसकी माता यह बात जान कर उसको दूध पिलाती है। जब बच्चा बड़ा हो जाता है तथा शरीर की लालसाओं से परिचित हो जाता है और भले कर्मों के करने में अपने को व्यस्त कर देता है, वह स्वयं यह स्वतन्त्र इच्छा हो जाता है क्योंकि ईश्वर भले और बुरे के परे है।

    19-दारा शुकोह हृदय का क्या अर्थ है?

    बाबा लाल हृदय ‘मैं’ और ‘तुम’ कहने के लिए है- अर्थात् द्वैत जो दो (की स्वीकृति) से उत्पन्न होता है। क्योंकि हृदय मन (अर्वा-आत्मा) को प्रत्येक दिशा में भ्रमण कराता है- पिता, माता, भ्राता, वधू, सन्तान की ओर- जिनमें उसकी आसक्ति होती है। हमको जानना चाहिये दो में आसक्ति हृदय के कारण होती है।

    20-दारा शुकोह हृदय की आकृति क्या है जिसको हम देख नहीं सकते हैं?

    (सूरते दिल चे अस्त कि दर नज़र मी आयद)

    बाबा लाल हृदय की आकृति वायु की श्वास की भाँति है।

    21-दारा शुकोह हृदय का कर्म क्या है?

    बाबा लाल जैसे वायु वृक्षों का उन्मूलन कर देती है यद्यपि वह स्वयं दृष्टिगत नहीं होता है, उसी प्रकार हृदय 5 इन्द्रियों को विचलित कर देता है। यह हम में है और तब भी हमारे दृष्टिगत नहीं है। इस प्रकार हृदय की आकृति वायु की श्वास की भाँति है।

    22-दारा शुकोह हृदय का कर्म क्या है?

    बाबा लाल हृदय हमारे मन का दलाल है।

    23-दारा शुकोह यह बात हम कैसे जान सकते है?

    बाबा लाल पाँच इन्द्रियों की दुकान(माध्यम) से यह संसार के आनन्द को प्राप्त करता है तथा इनको मन तक पहुंचाता है तथा मन स्वयं इन आनन्दों के प्रभोलनों में अनुरक्त हो जाता है। इस प्रकार हृदय ग्राहक के लिए दुकान से वस्तुएं प्राप्त करता है तथा अपना शुल्क लेकर अलग हो जाता है। हानि लाभ का सम्बन्ध क्रेता या विक्रेता से है। इस प्रकार यह दलाल का आचरण करता है और यही इसका कर्म है।

    24-दारा शुकोह फकीरों की निद्रा किसको कहते है?

    बाबा लाल निंद्रा वह है जो मनुष्य को आती है जिसमें संसार की प्रत्येक इच्छा छूट जाती है तथा मनुष्य “तू” और “मैं” से मुक्त हो जाता है तथा निंद्रा में कोई भी सांसारिक वस्तु स्वप्न में भी उसको प्रकट नहीं होती है। फकीरो की निंद्रा को हिन्दी में शायद योगनिंद्रा कहते हैं क्योंकि यह संसार के आवागमन से मुक्त है। यही मोक्ष मुक्ति है।

    25-दारा शुकोह जागरण (बेदारी) क्या है जिसमें पशु, वनस्पति, खनिज पदार्थ आदि (अपने विकास की) चार अवस्थाओं को प्राप्त होते है?

    बाबा लाल इसको “विश्व का सम्पूर्ण भ्रमण” (गर्दिशे फ़लक) कहते हैं। विश्व एक पुरुष है जिसका सिर उत्तर है, टाँगे दक्षिण है, नेत्र सूर्य तथा चन्द्र है, हड्डियां पर्वत तथा पत्थर है, खाल पृथ्वी है, नाडी सागर है, रक्त समुद्रों तथा झरनों का जल है, झाड़ियाँ तथा जंगल इसके बाल है एवं आकाश इसका श्रोत्र है।

    26-दारा शुकोह आकाश एक है, परन्तु श्रोत्र दो है- यह क्यों?

    बाबा लाल दोनों श्रोत्र एक ही शब्द सुनते हैं।

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