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Sufinama

चारागर पर अशआर

चारागरः चारागर का इस्ति’माल

मुश्किल आसान करने वाला, काम बनाने या करने वाला वग़ैरा के लिए होता है। चारा-साज़, मुआ’लिज और तबीब के मा’नी में भी इसका इस्ति’माल होता है। सूफ़ी शो’रा ने इसका इस्ति’माल बड़े ख़ूबसूरत अंदाज़ में किया है।उनके निराले अश्आ’र यहाँ पढ़ें।

हर क़दम कश्मकश हर-नफ़स उलझनें ज़िंदगी वक़्फ़ है दर्द-ए-सर के लिए

पहले अपने ही दरमाँ का ग़म था हमें, अब दवा चाहिए चारागर के लिए

शकील बदायूनी

चारागर-ए-ख़ुश-फ़हम ज़रा कुछ अक़्ल की ले कुछ होश की ले

बीमार-ए-मोहब्बत भी तुझ से नादान कहीं अच्छा होगा

कामिल शत्तारी

ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-अय्याम के साँचे में ढलता है

कि इक ग़म दूसरे का चारागर है हम कहते थे

वासिफ़ अली वासिफ़

रह जाये चंद रोज़ जो बीमार-ए-ग़म के पास

ख़ुद अपना दिल दबाए हुए चारागर फिरे

फ़ना निज़ामी कानपुरी

ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ शुक्र में मसरूफ़ है चारागर

जब से फाहा तू ने रखा सीना के नासूर पर

इब्राहीम आजिज़

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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