चारागर पर अशआर
चारागरः चारागर का इस्ति’माल
मुश्किल आसान करने वाला, काम बनाने या करने वाला वग़ैरा के लिए होता है। चारा-साज़, मुआ’लिज और तबीब के मा’नी में भी इसका इस्ति’माल होता है। सूफ़ी शो’रा ने इसका इस्ति’माल बड़े ख़ूबसूरत अंदाज़ में किया है।उनके निराले अश्आ’र यहाँ पढ़ें।
हर क़दम कश्मकश हर-नफ़स उलझनें ज़िंदगी वक़्फ़ है दर्द-ए-सर के लिए
पहले अपने ही दरमाँ का ग़म था हमें, अब दवा चाहिए चारागर के लिए
ऐ चारागर-ए-ख़ुश-फ़हम ज़रा कुछ अक़्ल की ले कुछ होश की ले
बीमार-ए-मोहब्बत भी तुझ से नादान कहीं अच्छा होगा
ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-अय्याम के साँचे में ढलता है
कि इक ग़म दूसरे का चारागर है हम न कहते थे
रह जाये चंद रोज़ जो बीमार-ए-ग़म के पास
ख़ुद अपना दिल दबाए हुए चारागर फिरे
ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ शुक्र में मसरूफ़ है ऐ चारागर
जब से फाहा तू ने रखा सीना के नासूर पर
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere