Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama
Kamil Shattari's Photo'

कामिल शत्तारी

1905 - 1976 | हैदराबाद, भारत

‘’आपको पाता नहीं जब आपको पाता हूँ मैं’’ लिखने वाले शाइ’र

‘’आपको पाता नहीं जब आपको पाता हूँ मैं’’ लिखने वाले शाइ’र

कामिल शत्तारी

ग़ज़ल 14

शे'र 42

कलाम 44

रूबाई 2

 

ना'त-ओ-मनक़बत 36

मुख़म्मस 1

 

वीडियो 46

This video is playing from YouTube

वीडियो का सेक्शन
अन्य वीडियो

अज्ञात

mere banne ki baat na puchho mera banna hariyala hai

मनज़ूर आलम नियाज़ी

अल्लाह रे फ़ैज़-ए-आम दर-ए-दस्तगीर का

अज्ञात

आप को पाता नहीं जब आप को पाता हूँ मैं

अब्दुल्लाह मंज़ूर नियाज़ी

आप कौनैन की हैं जान रसूल-ए-’अरबी

अज्ञात

'इश्क़ की बर्बादियों की फिर नई तम्हीद है

अज्ञात

'इश्क़-ए-नबवी क्या है कौनैन की दौलत है

अज्ञात

उनका हो कर ख़ुद उन्हें अपना बना सकता हूँ मैं

अज्ञात

उन्हीं की मर्ज़ी पे चल रहा हूँ उन्हीं की मर्ज़ी तो चल रही है

मह्बूब बंदा नवाज़ी

एक ना'रा सा निकल जाता है अक्सर या हुसैन

वारसी ब्रदर्स

ऐ शो’ला-ए-जवाला जब से लौ तुझ से लगाए बैठे हैं

अज्ञात

करम का वक़्त है हद से ज़्यादा है परेशानी

अज्ञात

करम हो जाए तो कर लूँ नज़ारा या रसूल-अल्लाह

अज्ञात

कलाम-ए-ख़ुदा है कलाम-ए-मोहम्मद

अज्ञात

कस्मपुर्सी में ग़रीबों के सहारे ख़्वाजा

अज्ञात

कौन बैठा है अब अंदेशा-ए-फ़र्दा ले कर

हाजी महबूब अ'ली

ख़ुलासा पंजतन का हैं मु’ईनुद्दीन-ओ-मुहिउद्दीं

अज्ञात

ग़म-ए-इ'श्क़ में आह-ओ-फ़रियाद कैसी हर इक नाज़ उनका उठाना पड़ेगा

अज्ञात

जनाब-ए-पीर सा अब कोई आक़ा हो नहीं सकता

अज्ञात

ज़बान-ए-जल्वा से है गोया जहाँ का सारा निगार-ख़ाना

हाजी महबूब अ'ली

तजल्ली नूर क़दम-ए-ग़ौस आ'ज़म

अज्ञात

तुम्हारी दीद में है वो असर या ग़ौस समदानी

अज्ञात

तेरी नज़र से दिल को सुकूँ है क़रार है

अज्ञात

तिरे दर की भीक पर है मिरा आज तक गुज़ारा

अज्ञात

तिरे हुस्न का करिश्मा मिरी हर बहार ख़्वाजा

अज्ञात

दम में जब तक दम रहे

अज्ञात

पास आते हैं मिरे और न बुलाते हैं मुझे

अज्ञात

बे-गाना-ए-इ’रफ़ाँ को हक़ीक़त की ख़बर क्या

अज्ञात

ब-तुफ़ैल-ए-दामन-ए-मुर्तज़ा में बताऊँ क्या मुझे क्या मिला

अज्ञात

ब-तुफ़ैल-ए-दामन-ए-मुर्तज़ा मैं बताऊँ क्या मुझे क्या मिला

अज्ञात

भीक दे जाइए अपने दीदार की मरने वाले का अरमाँ निकल जाएगा

अज्ञात

मिरी नज़र में है रौज़ा तिरा ग़रीब-नवाज़

अक़ील और शकील वारसी

ये दिल हुज़ूर पे क़ुर्बां नहीं तो कुछ भी नहीं

अज्ञात

ये बारगाह-ए-ख़्वाजा-ए-बंदा-नवाज़ है

अज्ञात

यार की मर्ज़ी के ताबे' यार का दम-भर के देख

अज्ञात

रूप उस के नित-नए और आईना-ख़ाने हज़ार

अज्ञात

रसूलुल्लाह से निस्बत पे क़िस्मत नाज़ करती है

अज़ीज़ अहमद ख़ान वारसी

राज़-ए-दिल किसी उ'न्वाँ लब पे ला नहीं सकते

अक़ील और शकील वारसी

वो जब से ख़िर्मन मसर्रतों का जला गए बिजलियाँ गिरा के

अज्ञात

सरताज-ए-रुसुल मक्की मदनी सरकार-ए-दो-आ’लम सल्ले-अ'ला

अज्ञात

सहारा बे-सहारों का हिमायत मुर्तज़ा की है

अज्ञात

साए में तुम्हारे दामन के जिस दिन से गुज़ारा करते हैं

अज्ञात

है जुमला जहाँ परतव-ए-अनवार-ए-मोहम्मद

अज्ञात

है हासिल-ए-हयात मोहब्बत रसूल की

अज्ञात

हर इक मुश्किल में काम आई दुहाई मेरे मौला की

अज्ञात

मेरे बने की बात न पूछो मेरा बना हरियाला है

मोहम्मद महबूब बंदानवाज़ी

संबंधित सुफ़ी शायर

"हैदराबाद" के और शायर

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए