जो तुम्हारी बात है है वो ज़माना से जुदा
शोख़ियाँ ईजाद करते हो बड़े उस्ताद हो
भूलेगा न ऐ 'अकबर' उस्ताद का ये मिस्रा
साक़ी दिए जा साग़र जब तक न हो बे-होशी
वही इंसान है 'एहसाँ' कि जिसे इल्म है कुछ
हक़ ये है बाप से अफ़्ज़ूँ रहे उस्ताद का हक़
शाइ’रान-ए-दहर को अब है परेशानी नसीब
करते हैं उस्ताद 'अकमल' जम्अ' दीवाँ इन दिनों
अहल-ए-आ’लम कहते हैं जस को शहंशाह-ए-सुख़न
मैं भी हूँ शागिर्द 'कौसर' अस जगत उस्ताद का
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere