Qawwalo'n ke Qisse - Aziz Miyan Qawwal ka Qissa
अज़ीज़ मियां मेरठी इकलौते ऐसे अनोखे क़व्वाल थे जो अपनी क़व्वालियाँ खुद लिखते थे ।साबरी ब्रदर्स और इनमें एक प्रतिद्वंदिता चलती थी।1975 में अज़ीज़ मियां का नया एल्बम ‘मैं शराबी’ आया, उसी साल साबरी ब्रदर्स का भी नया एल्बम ‘भर दो झोली मेरी या मुहम्मद’बाज़ार में आया जिसके गीत पुरनम इलाहाबादी ने लिखे थे । दोनों एल्बम बहुत प्रसिद्द हुए । 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने अज़ीज़ मियां को अपने यहाँ आमंत्रित किया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया।साबरी ब्रदर्स ने उसी साल एक क़व्वाली पढ़ी जिसका उन्वान था – ओ शराबी ! छोड़ दे पीना ! अज़ीज़ मियां कहाँ चुप रहने वाले थे । उन्होंने भी तुरंत ही एक क़व्वाली लिख कर रिकॉर्ड करवाई जिसका उन्वान था – हाय कम्बख़्त! तूने पी ही नहीं ।
अज़ीज़ मियां का अंदाज़ सबसे अनोखा था । किसी क़व्वाल घराने से न होने पर भी उन्होंने क़व्वाली को एक ऐसे मुकाम पर पहुँचाया जिसकी हदें आसमान की बुलंदियों को छूती नज़र आती हैं। इन्हें शहंशाह-ए-क़व्वाली भी कहा जाता है । इंश्क़ ए हक़ीक़ी को उन्होंने रूहानी शराब में डुबाकर आशिक़ों के लिए एक कभी न उतरने वाला नशा तैयार कर दिया जिसमे सुनने वाले का ख़ुमार कभी नहीं टूटता।
अज़ीज़ मियां पहले छोटी -मोटी महफ़िलों में गाया करते थे परन्तु उनकी ज़िन्दगी ने एक नया मोड़ तब लिया जब 1966 में उन्होंने ईरान के शाह रज़ा पहलवी के समक्ष क़व्वाली पढ़ी। शाह क़व्वाली से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अज़ीज़ मियाँ को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया। इसके बा’द अज़ीज़ मियाँ प्रसिद्द हो गए और उन्होंने अपनी एल्बम रिकॉर्ड करवाई । इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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