Qawwalo'n ke Qisse - Meraj Ahmad Nizami ka Qissa
हैदराबाद के सूफ़ी शैख़ एवं शाइर अब्दुल क़ादिर सिद्दीक़ी हसरत ने मौसीक़ी को एक विज्ञान की तरह सीखा न कि प्रदर्शन हेतु। अपने आध्यात्मिक मक़ाम कि वजह से वह माहिरीन-ए-फ़न के घरों या कूचा –ओ-बाज़ार के चक्कर नहीं लगा सकते थे इस कारण से उन्होंने संगीत सीखने का आधुनिक तरीक़ा इख़्तियार किया। बाज़ार में उपलब्ध तमाम संगीत की रिकॉर्डिंग वह घर ले आए और उन्हें सुन-सुन कर इस कला में महारत हासिल कर ली। हालांकि हज़रत बाहर प्रदर्शन नहीं करते थे पर उन्होंने मुहम्मद ग़ौस नामक एक क़व्वाल को अपना शागिर्द बनाया और उसे संगीत की विधिवत शिक्षा दी। मे’राज अहमद निज़ामी वह दूसरे क़व्वाल थे जो उनके द्वारा क़ादरिया सिलसिले में बै’त हुए।
मे’राज अहमद निज़ामी दिल्ली के प्रसिद्ध क़व्वालों में से थे ।उन्होंने न सिर्फ़ क़व्वाली पढ़ी बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए क़व्वाली को सहेजा भी। उनकी किताब ‘सुरूद ए रूहानी’ सूफ़ी क़व्वालियों का संग्रह है जो उन्होंने उर्दू में लिखी है। इसमें ज़्यादातर ग़ज़लें हैं लेकिन कुछ रुबाइयाँ और गीत भी शामिल हैं । इस किताब में उर्दू की 132, फ़ारसी की 75, हिन्दी की 56 और पंजाबी की 2 ग़ज़लें शामिल हैं।
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