Qawwalo'n ke Qisse - Khairabad ke Qawwalon ka Qissa
मदन ख़ान नामक से शख़्स अमरोहा के पास रहते थे।वह श्याम-वर्ण के थे और उनकी कद काठी भी अजीब थी। ख़ैराबाद आकर वह शैख़ सअदुद्दीन ख़ैराबादी की ख़ानक़ाह में रहने लगे । उनकी आवाज़ बड़ी अच्छी थी और हज़रत अक्सर उनका गाना सुनते थे।उन्ही दिनों क़न्नौज की एक खूबसूरत गायिका ख़ैराबाद आई हुई थी।मदन साहब उसके रूप लावण्य पर ऐसे मोहित हुए कि उन्होंने उसके समक्ष निकाह का प्रस्ताव रख दिया।उनका यह प्रस्ताव मुतरिबा (गायिका ) ने साफ़ साफ़ ठुकरा दिया मगर मियां मदन ख़ान ऐसे लट्टू हुए कि उन्होंने शैख़ साहब से समक्ष अपनी यह परेशानी रखी । हज़रत शैख़ सअदुद्दीन ख़ैराबादी ने उनके लिए सिफ़ारिश कर दी। मुतरिबा ने कहा – शैख़ साहब क्या में एक सियाह मटके को क़ुबूल करूँ ? हज़रत ने फ़रमाया – अगर्चे मटका काला है मगर शरबत से भरा हुआ है। इस से जो औलाद होगी वह शाही दरबारों में मक़बूल होगी । कुछ सोंचकर उसने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। हज़रत की भविष्यवाणी सच साबित हुई। मियां मदन के पोते सुन्दर ख़ान बादशाह के शाही गवैय्ये रहे।यह खानदान काफ़ी समय तक ख़ैराबाद में आबाद रहा।सुन्दर ख़ान के बेटे अकबर ख़ान हुए और अकबर ख़ान के पोते या परपोते वज़ीर ख़ान थे ।वज़ीर ख़ान के दो पुत्र थे – नसीर ख़ान और बशीर ख़ान।नसीर ख़ान के दो पुत्र गौहर ख़ान और क़मर ख़ान थे। क़मर ख़ान पाकिस्तान चले गए और वहीं बस गए । गौहर ख़ान के बेटे अफ़सर ख़ान और शकील ख़ान हुए।अफ़सर ख़ान का विसाल हो गया है जबकि शकील ख़ान अभी हयात हैं।अफ़सर ख़ान के बेटे कफ़ील ख़ान हैं जो लखनऊ में रहते हैं।
हज़रत शैख़ सादुद्दीन ख़ैराबादी के आस्ताने पर क़व्वाली की मीरास आज तक इसी घराने के पास है ।बशीर ख़ान और नसीर ख़ान जो गोबरे और बच्छन के नाम से प्रसिद्द थे उनकी एक बंदिश राग बसंत में मिलती है जो आज भी हज़रत के उर्स पर पढ़ी जाती है –
आज रचो है बसंत सअद घर
गुइय्यन सब मिल गायें बसंत
फूलन गरवा चढाओ सअद घर
सअद पिया मैं तोरे बलिहारी
जगमग जगमग फूल रही तोरी फुलवरिया
आज रचो है बसंत सअद घर
-सय्यद ज़िया अलवी की किताब ज़िक्र ए सअद से साभार
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