Qawwalo'n ke Qisse - Shankar Shambhu Qawwal ka Qissa
शंकर शम्भू क़व्वाल का नाम आज कौन नहीं जानता । एक बार शंकर और शम्भू ख्व़ाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के उर्स पर हाज़िरी देने पहुंचे । उन्हें वहां गाने का मौका नहीं दिया गया क्यूंकि एक तो वह नए थे और दुसरे क़व्वालों की एक लंबी फ़ेहरिश्त कतार में खड़ी थी । यह देखकर बड़े भाई शंकर ने दरगाह की सीढ़ियों पर ही उपवास शुरू कर दिया ।वह तीन दिनों तक भूखे प्यासे ख्व़ाजा साहब की चौखट पर बैठे रहे ।उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक उपवास नहीं तोड़ने का प्रण लिया । आखिरकार दरगाह कमिटी के लोगों ने दोनों भाइयों को उर्स के अंतिम दिन महफ़िल ख़ाना में गाने की इजाज़त दे दी। जब दोनों भाइयों ने ‘महबूब ए किब्रिया से मेरा सलाम’ गाना शुरू किया तो सारी जनता मंत्रमुग्ध थी ।कई लोग वहाँ रोने लगे और इन क़व्वालों ने सबका दिल जीत लिया। उसी दिन उन्हें क़व्वाल की पदवी मिली और उस दिन से दोनों भाई शंकर शम्भू क़व्वाल के नाम से प्रसिद्द हुए।
उसी महफ़िल में कलाम सुनकर रोते हुए लोगों में से एक थे मदर इंडिया फिल्म के निर्माता महबूब ख़ान साहब । उन्होंने इन दोनों भाइयों को मुंबई आमंत्रित किया और महबूब स्टूडियो के उद्घाटन समारोह में गाने का आग्रह किया । शंकर शम्भू ने आलम आरा , तीसरी कसम, बरसात की रात, शान ए ख़ुदा, लैला मजनू, मंदिर मस्जिद जैसी कई प्रसिद्ध फिल्मों को अपनी सुरीली आवाज़ से सजाया है ।शंकर की म्रत्यु सड़क दुर्घटना में सन 1984 में हो गयी जबकि शम्भू क़व्वाल ने 1989 में इस संसार को अलविदा कहा। आज कल शंकर के बेटे राम शंकर और शम्भू के बेटे राकेश शम्भू अपने पिता की परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं।
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