कहानी -25-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी
मैंने अ’रब के एक बादशाह के बारे में सुना कि उसने हुक्म दिया, अमुक व्यक्ति की तनख़्वाह दुगुनी कर दी जाए क्योंकि वह दरबार में बराबर हाज़िर रहता है और हमारे हुक्म का इन्तिज़ार करता रहता है, जबकि दूसरे नौकर मौज-मजा करते हैं और हमारी ख़िदमत करने में सुस्त हैं।
एक ख़ुदा-परस्त ने यह सुना तो मारे ख़ुशी के शोर मचाने लगा। लोगों ने उसकी ख़ुशी का कारण पूछा तो उसने कहा, 'ख़ुदा भी अपने बन्दों का दर्जा इसी तरह ऊँचा करता है।'
'यदि कोई दो दिन सुब्ह-सुब्ह बादशाह के दरबार में सलाम करने जाता है तो तीसरे दिन बादशाह उसकी तरफ़ मेहरबानी से ज़रूर देखेगा।'
'सच्चे दिल से ख़ुदा की इ’बादत करने वाले को यह उम्मीद रहती है कि वह उसकी चौखट से ना-उम्मीद नहीं लौटेगा।'
'हुक्म बजा लाने से ही दर्जा बढ़ता है और हुक्म न मानना उन्नति से वंचित रहना है।'
'जो सच्चे लोगों का अनुकरण करना चाहता है, वह सेवा के भाव से अपना सिर मालिक की चौखट पर झुकाए रखता है।'
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