कहानी -3-परवरिश- गुलिस्तान-ए-सा’दी
एक बहुत बड़ा विद्वान बादशाह के बेटे को पढ़ाता था। वह उसे बे-हद डांटता और मारता रहता था। एक दिन मजबूर होकर लड़के ने पिता के पास जाकर शिकायत की और कपड़े उतारकर अपना ज़ख़्मी जिस्म भी दिखाया।
बादशाह का दिल भर आया। उसने उस्ताद को बुलवाया और कहा, तू मेरे बच्चे को जितना झिड़कता और मारता है उतना आ’म लोगों के बच्चों को नहीं। इसकी वजह क्या है?
उस्ताद बोला, वजह यह है कि यूँ तो सोच-समझकर बोलना और अच्छे काम करना सब लोगों के लिए ज़रूरी है, लेकिन बादशाहों के लिए ख़ास तौर से ज़रूरी है। जो बात उनकी ज़बान से निकलेगी या जो काम उनके हाथ में होगा वह सारी दुनिया में मशहूर हो जाएगा, जब कि आ’म लोगों की बात और काम का उतना असर नहीं होता।
'यदि किसी फ़क़ीर में सौ ऐ’ब है तो उसके साथी उसका एक ऐ’ब भी न लेंगे। लेकिन बादशाह से एक ना-ज़ाइज हरकत हो जाये तो उसकी शोहरत मुल्क के एक सिरे से दूसरे सिरे तक हो जाएगी।''
इसलिए और बच्चों के मुक़ाबलों में बादशाह के बेटे के चरित्र को सँवारने की उस्ताद को ज़ियादा कोशिश करनी चाहिये और उसे ख़ुदा से दुआ’ करनी चाहिये कि इस नेक काम में वह उसकी मदद करे।
जिस बच्चे को तू बचपन से अदब नहीं सिखाएगा वह जब बड़ा होगा तो उसमें कोई गुण नहीं होगा।'
जब तक लकड़ी गीली रहती है, उसे कैसे ही मोड़ लो। जब वह सूख जाती है, तो आग में रखकर ही उसे सीधा किया जा सकता है।
'जो लड़का सिखाने वाले का ज़ुल्म बर्दाश्त नहीं कर सकता उसे ज़माने का ज़ुल्म बर्दाश्त करना पड़ता है।'
बादशाह को उस क़ाबिल उस्ताद की बात पसन्द आई। उसने ख़ुश होकर उसे कपड़ों का एक जोड़ा इनआ’म में दिया और उसके पद में तरक़्क़ी कर दी।
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