कहानी-32- फ़क़ीरी गुलिस्तान-ए-सा’दी
मैं अपने दमिश्क़ के दोस्तों के साथ रहते-रहते इतना ऊब गया कि मैं. कुद्स के जंगल की ओर निकल गया। वहाँ रहकर मैं जानवरों से प्रेम करने लगा।
दुर्भाग्य से मुझे फ़िरंगियों ने क़ैद कर लिया और यहूदियों के साथ मुझे भी तराबलस में एक खाई की मिट्टी निकालने के काम पर लगा दिया।
उधर से हलब का एक रईस गुज़रा, जो मुझे पहले से जानता था। वह मुझे पहचान गया और बोला, क्या हाल है? यह तकलीफ़ क्यों उठा रहा है।'
मैंने कहा, क्या बतलाऊँ? मैं जंगल की तरफ़ इसलिए भागा था कि मेरा दिल ख़ुदा से लगा रहे, लेकिन यहाँ मुझे अस्तबल में जानवरों के साथ बाँध दिया गया। अब समझ लें मेरा क्या हाल हो सकता है?
परायों के साथ जंगल में रहने की उपेक्षा क़ैदी बनकर अपनों के सामने रहना कहीं अच्छा है।
उसे मेरी हालत पर रहम आ गया और उसने दस दीनार देकर मुझे फ़िरंगियों की क़ैद से छुड़ा लिया। इसके बा’द वह मुझे अपने घर ले आया। उसकी एक बेटी थी जिसकी उसने सौ दीनार महर पर मेरे साथ शादी कर दी।
जब मैं कुछ समय तक उसके साथ रह लिया तो मेरी बीवी मेरे साथ दुर्व्यवहार करने लगी। उसने मेरी ज़िन्दगी दूभर कर दी।
'यदि किसी भले आदमी के घर में बद-ज़बान औ’रत हो तो उस बेचारे के लिए दोज़ख़ यही है।
'बुरे साथी से ख़ुदा बचाए। ऐ मालिक हमें तू दोज़ख़ की मुसीबतों से बचा।'
एक दिन मेरी बीवी मुझे ता’ना देने लगी, क्या तू वही आदमी नहीं है जिसे मेरे वालिद ने दस दीनार देकर फ़िरंगियों की क़ैद से छुड़ाया था।?”
मैंने कहा, हाँ, मैं वही हूँ जिसे तेरे वालिद ने दस दीनार के बदले फ़िरंगियों की क़ैद से छड़ाया और फिर सौ दीनार के बदले तेरे हाथों गिरफ्तार करवा दिया।”
'मैंने सुना कि एक बुज़ुर्ग ने एक बकरी को भेड़िये के पंजे से छुड़ाया और रात को उसके गले पर छुरी रख दी। बकरी कहने लगी,ऐ ज़ालिम, भेड़िये के पंजे से तूने मझे छुड़ा लिया, लेकिन जब मैंने ग़ौर किया तो मेरी समझ में आया कि तू ख़ुद भेड़िया था।'
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.