Sufinama

तलब कर्दन-ए-उम्मत-ए-’ईसा 'अलैहिस्सलाम अज़ उमरा कि वली ’अहद अज़ शुमा कुदाम अस्त

रूमी

तलब कर्दन-ए-उम्मत-ए-’ईसा 'अलैहिस्सलाम अज़ उमरा कि वली ’अहद अज़ शुमा कुदाम अस्त

रूमी

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    तलब कर्दन-ए-उम्मत-ए-'ईसा 'अलैहिस्सलाम अज़ उमरा कि वली 'अहद अज़ शुमा कुदाम अस्त

    हज़रत ईसा की उम्मत का मालूम करना कि तुम में से वली अहद कौन है

    बाद माहे गुफ़्त ख़ल्क़ मेहतराँ

    अज़ अमीराँ कीस्त बर जायश निशाँ

    एक महीना के बा’द लोगों ने कहा बुज़ुर्गो

    सरदारों में से उक का क़ाइमक़ाम कौन है

    ता बजा-ए-ऊ शनासीमश इमाम

    दस्त-ओ-दामन रा ब-दस्त-ए-ऊ दहेम

    ताकि उसकी जगह हम उसको इमाम समझें

    ताकि हमारा काम उसके ज़रिआ’ मुकम्मल हो

    चूँकि शुद ख़ुर्शीद-ओ-मा रा कर्द दाग़

    चारः न-बुवद बर मक़ामश अज़ चराग़

    जब कि सूरज ग़ुरूब हो गया और हमें दाग़ दे गया

    तो उसकी जगह चराग़ ज़रूरी हो गया है

    चूँकि शुद अज़ पेश-ए-दीदः वस्ल-ए-यार

    नाइबे बायद अज़ू माँ यादगार

    जब दोस्त का चेहरा आँखों से ग़ाइब हो गया

    (तो) हमें (उसका) क़ाइम-मक़ाम उसकी यादगार चाहिए

    चूँकि गुल ब-ग़ुज़श्त-ओ-गुलशन शुद ख़राब

    बू-ए-गुल रा अज़ कि याबम अज़ गुलाब

    जब फ़स्ल-ए-गुल ख़त्म हो गई और चमन तबाह हो गया

    तो फूल की ख़ुश्बू किससे तलब करें, गुलाब से

    चूँ ख़ुदा अंदर न-यायद दर 'अयाँ

    नाइब-ए-हक़ अन्द ईं पैग़मबराँ

    चूँकि ख़ुदा मुशाहदा में नहीं आता है

    ये पैग़ंबर अल्लाह के क़ाइम-मक़ाम हैं

    ने ग़लत गुफ़्तम कि नाइब बा-मनूब

    गर दो पिंदारी क़बीह आयद ख़ूब

    नहीं वो दो हैं जब तक तू ज़ाहिर-परस्त है

    जो ज़ाहिर-बीनी से गुज़रा उसके लिए एक हैं

    ने दो बाशद ता तुई सूरत-परस्त

    पेश-ए-ऊ यक गश्त कज़ सूरत-बरस्त

    जब तू ब-ज़ाहिर देखेगा तो तेरी दो आँखें हैं

    तू उनके उस नूर को देख कि वो एक ही है

    चूँ ब-सूरत बंगरी चश्म-ए-तू दुस्त

    तू ब-नूरश दर निगर कज़ चश्म-ए-रुस्त

    दोनों आँखों की रौशनी में फ़र्क़ नहीं किया जा सकता

    जब इन्सान उसके नूर पर नज़र डाले

    नूर-ए-हर दो चश्म न-तवाँ फ़र्क़ कर्द

    चूँकि दर नूरश नज़र अन्दाख़्त मर्द

    अगर तू दस चराग़ एक जगह ले आए

    तो हर एक चराग़ सूरत में दूसरे से जुदा होगा

    दह चराग़ अर हाज़िर आयद दर मकाँ

    हर यकी बाशद ब-सूरत ग़ैर-ए-आँ

    हर एक के नूर में फ़र्क़ नहीं किया जा सकेगा

    बे-शक जब तू उसके नूर की तरफ़ रुख़ करेगा

    फ़र्क़ न-तवाँ कर्द नूर-ए-हर यके

    चूँ ब-नूरश रू-ए-आरी बे-शके

    अगर तू सौ सेब और सौ बिही गिने

    तो सौ नज़र आएँगे लेकिन जब उनको निचोड़ेगा तो एक हो जाऐंगे

    गर तू सद सेब-ओ-सद आबी ब-शुमुरी

    सद न-मानद यक शवद चूँ ब-फ़िशुरी

    मा’नी में तक़्सीम और ’अदद नहीं है

    तज्ज़िया और इकाईयाँ (भी) मा’नी में नहीं हैं

    दर म'आनी क़िस्मत-ओ-आ'दाद नीस्त

    दर म'आनी तज्ज़िया-ओ-अफ़राद नीस्त

    यार का यारों से इत्तिहाद बेहतर है

    मा’नी का इत्तिबा कर, ज़ाहिर तो सरकश है

    इत्तिहाद-ए-यार बा-याराँ ख़ुशस्त

    पाए मा'नी-गीर सूरत सरकशस्त

    सरकश ज़ाहिर को रियाज़त से पिघला दे

    ताकि तू उसके नीचे ख़ज़ाना की तरह वहदत को देख ले

    सूरत-ए-सरकश गुदाज़ाँ कुन ब-रंज

    ता ब-बीनी ज़ेर-ए-ऊ वहदत चु गंज

    और अगर तू पिघला सके तो उसकी मेहरबानियाँ

    भी पिघला देंगी (मुख़ातिब) मेरा दिल उसका ग़ुलाम है

    वर तू न-गुदाज़ी 'इनायत-हा-ए-ऊ

    ख़ुद गुदाज़द दिलम मौला-ए-ऊ

    वो अपने आपको दिलों में भी ज़ाहिर कर देता है

    और वो दरवेश की गुदड़ी सी देता है

    नुमायद हम ब-दिलहा ख़्वेश रा

    ब-दोज़द ख़िर्क़ः-ए-दरवेश रा

    हम बसीत और बिलकुल एक जौहर थे

    हम बे-सर-ओ-पा थे और वो हम सब का सरदार-ओ-मुरब्बी था

    मुंबसित बूदेम-ओ-यक जौहर हमः

    बे-सर-ओ-बे-पा बुदेम आँ सर हम:

    हम सूरज की तरह एक जौहर थे

    हम में गदला-पन था और पानी की तरह साफ़ थे

    यक गुहर बूदेम हम चूँ आफ़ताब

    बे-गिरह बूदेम-ओ-साफ़ी हम-चु आब

    जब उस ख़ालिस नूर ने सूरत इख़्तियार की

    तो वो कुंगुरा के सायों की तरह मुत’अद्दिद बन गया

    चूँ ब-सूरत आमदाँ नूर-ए-सरह

    शुद 'अदद चूँ सायः-हा-ए-कुंगरह

    गोफन के ज़रिआ’ कुंगुरा को ढा दो

    ताकि इस फ़रीक़ से फ़र्क़ मिट जाए

    कुंगरह वीराँ कुनीद अज़ मिंजनीक़

    ता रवद फ़र्क़ अज़ मियान-ए-ईं फ़रीक़

    इस राज़ की तफ़्सील मैं ज़ोर-ओ-शोर से बयान करता

    लेकिन मैं डरता हूँ कि कहीं कोई दिल लग़्ज़िश खा जाए

    शर्ह-ए-ईं रा गुफ़्तमे मन अज़ मरे

    लैक तर्सम ता न-लग़्ज़द ख़ातिरे

    नुक्ते, तेज़ तल्वार की तरह तेज़ हैं

    अगर तेरे पास ढाल नहीं है वापस भाग जा

    नुक्तः-हा चूँ तेग़-ए-पोलादस्त तेज़

    गर न-दारी तू सिपर वापस गुरेज़

    इस तेज़ तल्वार के सामने सिपर के ब-ग़ैर मत

    इसलिए कि तल्वार, काटने से नहीं शर्माती

    पेश-ए-ईं इल्मास बे-इस्पर मिया

    कज़ बुरीदन तेग़ रा न-बुवद हया

    इसी वजह से मैंने तल्वार, ग़िलाफ़ में कर ली है

    ताकि कोई उल्टा पढ़ने वाला, उल्टा पढ़े

    ज़ीं सबब मन तेग़ कर्दम दर ग़िलाफ़

    ता कि कझ़ ख़्वानी न-ख़्वानद बर ख़िलाफ़

    हम क़िस्सा के इख़्तिताम पर आगए

    दोस्तों के मज्मा’ की वफ़ादारी की वजह से

    आमदेम अंदर तमामी दास्ताँ

    वज़ वफ़ादारी-ए-जम'-ए-रास्ताँ

    कि वो जो उस पेशवा के बा’द उठे

    उसकी जगह कोई क़ाइम-मक़ाम चाहते थे

    कज़ पस-ए-ईं पेशवा बरख़ास्तंद

    बर मक़ामश नाइबे-मी ख़्वास्तंद

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