ब-दाम-ए-ज़ुल्फ़-ए-तू दिल मुब्तिला-ए-ख़्वेशतन अस्त
ब-दाम-ए-ज़ुल्फ़-ए-तू दिल मुब्तिला-ए-ख़्वेशतन अस्त
ब-कुश ब-ग़म्ज़ा कि ईनश सज़ा-ए-ख़्वेशतन अस्त
तेरी ज़ुल्फ़ के जाल में दिल ख़ुद-ब-ख़ुद मुब्तला हुआ है
नाज़ से उस को क़त्ल कर दे यही उस की सज़ा है
गरत ज़े-दस्त बर आयद मुराद-ए-ख़ातिर-ए-मा
ब-दस्त बाश कि ख़ैरे बأजा-ए-ख़्वेशतन अस्त
अगर हमारे दिल की तमन्ना तेरे हाथ से पूरी हो सके
तो जल्द कर दे, इसलिए कि अपने के साथ भलाई है
ब-जानत ऐ बुत-ए-शीरीन-देहन कि हम-चूँ शम्अ'
शबान-ए-तीर: मुरादम फ़ना-ए-ख़्वेशतन अस्त
ऐ मेरे प्यारे बुत तेरी जान की क़सम शम्अ’ की तरह
तारीक रातों में मेरा मक़सद ख़ुद को फ़ना कर देना है
चू राई-ए-इश्क़ ज़दी बा तू गुफ़्तम ऐ बुलबुल
मकुन कि आँ गुल-ए-ख़ंदाँ बरा-ए-ख़्वेशतन अस्त
ऐ बुलबुल जब तूने इ’श्क़ करने की राय क़ायम की तो मैंने तुझसे कहा था
ऐसा न कर इसलिए कि ये ख़ुद-रौ फूल अपने लिए ही हैं
ब-मुश्क-ए-चीन-ओ-चिगुल नीस्त बू-ए-गुल मोहताज
कि नाफ़ः-अश ज़े-बंद-ए-क़बा-ए-ख़्वेशतन अस्त
फूल का हुस्न चीन-ओ-चिगिल के मुश्क का मोहताज नहीं है
इसलिए कि उस के नाफ़े ख़ुद उस के बंद-ए-क़बा से पैदा होते हैं
मरो ब-ख़ान:-ए-अरबाब बे-मुरव्वत-ए-दहर
कि कुंज-ए-आफ़ियत दर सरा-ए-ख़्वेशतन अस्त
ज़माने के बे-मुरव्वत अस्हाब के घर न जा
इसलिए कि तेरी आ’फ़ियत का गोशा अपने घर ही में है
ब-सोख़्त 'हाफ़िज़' ओ दर शर्त-ए-इश्क़-बाज़ी-ए-ऊ
हनूज़ बरसर-ए-अह्द-ओ-वफ़ा-ए-ख़्वेशतन अस्त
‘हाफ़िज़’ जल गया और इ’श्क़-ओ-जान की बाज़ी की शर्त में
अभी तक अपने अ’हद और वफ़ा पर क़ाइम है
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