बिया कि क़स्र-ए-अमल सख़्त सुस्त बुनियादस्त
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
बिया कि क़स्र-ए-अमल सख़्त सुस्त बुनियादस्त
बयार बाद: कि बुनियाद-ए-उ'म्र बर्बादस्त
अभिलषा की नींव रेत पर, आ तू मुझ तक जल्दी आ
जीवन का आधार हवा पर, ला, झट मुझको मदिरा दे
ग़ुलाम-ए-हिम्मत-ए-आनम कि ज़े-ए-चर्ख़-ए-कबूद
ज़े-हर्चे रंग तअ'ल्लुक़ पज़ीरद आज़ादस्त
नील गगन के नीचे जो उलझे ममता की माया में
उनसे मुक्त हुए जो, उनके साहस का मैं सदा ग़ुलाम
चे गोयमत कि ब-मय-ख़ान: दोश मस्त-ओ-ख़राब
सरोश-ए-आ'लम-ए-ग़ैबम चे मुज़्दह: दादस्त
कल जब मैं मद में विभोर था रजनी में मधुशाला में
देवदूत ने दिया संदेशा कैसे उसे बताऊँ मैं
कि ऐ बुलन्द-ए-नज़र शाह-बाज़-ए-सिद्र:-नशीं
नशेमन-ए-तू न ईं कुंज-ए-मेहनत आबादस्त
ऊँचे स्वर्ग लोग के वासी दिव्य दृष्टि वाले ऐ बाज़
कर्म-लोक का कोई कोना तुझ शाही का नीड़ नहीं
तुरा ज़े-कुंगर:-ए-अ'र्श मी-ज़नद सफ़ीर
न-दानमत कि दरीं दामगहे चे उफ़्तादस्त
नभ के कंगूरे से आकर एक रहस्यमयी आवाज़
कहती है, जाने क्युँ तेरा बंदी-गृह में हुआ पड़ाव
नसीहते कुनमत याद-गीर व दर अमल आर
कि ईं हदीस ज़े-पीर-ए-तरीक़तम यादस्त
एक तत्वज्ञानी ने मुझको कही बात जो याद मुझे
वही सीख मैं तुझको देता उसे याद रख अमल करो
मजो दुरुस्ती-ए-अहद अज़ जहान-ए-सुस्त निहाद
कि ईं अजूज़: उरूस-ए-हजार दामादस्त
इस दुर्बल दुनिया से मत कर वचन पालने की आशा
यह बुढ़िया रह चुकी अभी तक अनगिन लोगों की बीवी
ग़म-ए-जहाँ म-ख़ूर व पन्द-ए-मन मबर अज़ याद
कि ईं लतीफ़:-ए-नग़ज़म ज़े-रहरव-ए-यादस्त
लोक रीति से दुखी न हो तू, मेरी कही बात मत भूल
मुझे याद है एक पथिक की प्रेम मर्मवाली यह बात
रज़ा बदाद: ब-देह वज़ जबीं गिरह ब-कुशा
कि बर मन-ओ-तू दर-ए-इख़्तियार न-कुशादस्त
मन का क्षोभ मिटा कर जो कुछ मिला उसे स्वीकार करो
नहीं खुला हम तुम जैसों के लिए द्वार अधिकारों का
निशान-ए-अ'हद-ओ-वफ़ा नीस्त दर तबस्सुम-ए-गुल
ब-नाल-ए-बुलबुल-ए-आशिक़ कि जा-ए-फ़रियादस्त
यह जो है मुस्कान फूल में, नहीं वफ़ा का वहाँ निशान
आहें भर दिलमग्ना बुलबुल यह दुखड़ा रोने का ठाँव
हसद चे मी-बरी ऐ सुस्त-ए-नज़्म बर 'हाफ़िज़'
कबूल-ए-ख़ातिर-ओ-लुत्फ़-ए-सुख़न ख़ुदा दादस्त
ऐ! निष्प्रद पद रचने वाले ‘हाफ़ीज़’ से क्युँ करते हो डाह
मन की मौज, काव्य का रसा तो ईश कृपा से मिलता है.
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