हज़ार दुश्मनम अर मी-कुनंद क़स्द-ए-हलाक
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
हज़ार दुश्मनम अर मी-कुनंद क़स्द-ए-हलाक
गरम तू दोस्ती अज़ दुश्मनाँ न-दारम बाक
अगर हज़ारों दुश्मन मेरा वध करने का करें विचार
दुश्मन से मैं नहीं डरुँगा जो तू सखा रहे मेरा
मरा उम्मीद-ए-विसाल-ए-तू ज़िंद: मी-दारद
वगर्नः हर दमम अज़ हिज्रतस्त बीम-ए-हलाक
तेरे मधुर मिलन की आशा मुझको जीवित रखती है
वरना तेरा विरह मुझे तो सदा मृत्यु भय दिखलाता
नफ़स नफ़स अगर अज़ बाद न-शिनवम बूयत
ज़माँ ज़माँ कुनम अज़ ग़म चू गुल गरेबाँ चाक
साँस-साँस में पवन सहारे तेरी गंध न जो पाऊँ
तो फिर दुख से मैं भी क्षण-क्षण फाड़ूँ वस्त्र फूल जैसे
रवद ब-ख़्वाब दो-चश्म अज़ ख़याल-ए-तू हैहात
बुवद सबूर दिल अंदर फ़िराक़-ए-तू ख़ाशाक
तज कर तेरा ध्यान, नींद तक आँखें पहुँचे! ना ना ना
तेरी वरह घड़ी में मन को धीरज आए! ना ना ना
अगर तू ज़ख़्म ज़नी ब कि दीगरे मरहम
वगर तू ज़हर देही ब कि दीगरे तिरयाक
जो तू घायल करे, सुखद है मुझे अन्य के मरहम से
जो तू विष दे, मीठा मुझको किसी और के अमृत से
तुरा चुनाँ कि तुई हर नज़र कुजा बीनद
ब-क़द्र-ए-बीनिश-ए-ख़ुद हर कसे कुनद इदराक
जैसा तू है, कहाँ देखा पाता है तुझको हर कोई
जैसी जिनकी दृष्टि, तुझे वे वैसा ही देखा करते
इ'नाँ न-पेचम अगर मी-ज़नी ब-शमशीरम
सिपर कुनम सर-ओ-दस्तत न दारम अज़ फ़ित्राक
जो तू मारेगा कटार से मोड़ूँगा मैं नहीं लगाम
सिर सौंपूँगा, हाथ न खींचूँगा शिकार के झोले से
ब-चश्म-ए-ख़ल्क़ अ’ज़ीज़ आँ गहे शवी 'हाफ़िज़'
कि बर दरश ब-नेही रू-ए-मिस्किनत बर ख़ाक
जब अपना विनम्र मुख उसकी द्वार धूलि पर रख दोगे
तब तुम हो जाओगे ‘हाफ़िज़’ जग की आँखों के प्यारे
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