ईं ख़िर्क़ः कि मन दारम दर रेहन-ए-शराब औला
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
ईं ख़िर्क़ः कि मन दारम दर रेहन-ए-शराब औला
वीं दफ़्तर-ए-बे-मा'ना ग़र्क़-ए-मय-ए-नाब औला
ये गुदड़ी जो मैं पहने हुए हूँ उस का शराब में रहन होना बेहतर है
और इस बे-मा’नी दफ़्तर का ख़ालिस शराब में डूबना बेहतर है
चूँ उ’म्र तबह कर्दम चंदाँ कि निगह कर्दम
दर कुंज-ए-खराबाते उफ़्तादः ख़राब औला
चूँकि मैंने उ’म्र तबाह कर दी है, जिस क़दर भी मैंने ग़ौर किया
किसी शराब-ख़ाना के गोशे में मस्त पड़ा रहना बेहतर है
मन हाल-ए-दिल-ए-शैदा बा-ख़ल्क़ न-ख़्वाहम गुफ़्त
कीं क़िस्सः अगर गोयम बा-चंग-ओ-रबाब औला
मैं दीवाने दिल का हाल लोगों से न कहूँगा इसलिए कि अगर मैं ये क़िस्सा बयान करूँ तो चंग-ओ-रबाब के साथ बयान करना बेहतर है
ता-बे-सर-ओ-पा बाशद औज़ा'अ-ए-फ़लक ज़ीन्साँ
दर सर हवस-ए-साक़ी दर दस्त शराब औला
जब तक आसमान के हालात इसी तरह बे-सर-ओ-पा रहेंगे
तो सर में साक़ी का इ’श्क़ और हाथ में शराब रहना बेहतर है
अज़ हम-चू तू दिलदारे दिल बर न-कुनम आरे
गर ताब कशम बारे ज़ाँ ज़ुल्फ़-ए-ब-ताब औला
तुझ जैसे मा’शूक़ से मैं दिल न हटाऊँगा, हाँ
अगर अब मैं इस पुर-शिकन ज़ुल्फ़ से रंज उठाऊँ तो बेहतर है
चूँ मस्लहत-अंदेशी दूरस्त ज़े दरवेशी
हम सीन:-ए-पुर-आतिश ब हम दीदः-ए-पुर-आब औला
चूँकि दरवेशी से मस्लिहत-अंदेशी बई’द है
सीना का आग से भरा होना बेहतर है आँखों का पुर-नम रहना बेहतर है
चूँ पीर शुदी 'हाफ़िज़' अज़ मय-कद: बैरूँ शौ
रिंदी-ओ-हवसनाकी दर अ’हद-ए-शबाब औला
ऐ ’हाफ़िज़’! जब तू बूढ़ा हो गया है, शराब-ख़ाना से बाहर चला जा
रिन्दी और इ’श्क़-बाज़ी जवानी में बेहतर है
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