कनूँ कि दर चमन आमद गुल अज़ अ’दम ब-वजूद
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
कनूँ कि दर चमन आमद गुल अज़ अ’दम ब-वजूद
बनफ़शः दर क़दम-ए-ऊ निहाद सर-ब-सुजूद
कानन में साकार हो गया जब अमूर्त जग का यह फूल
हुई प्रार्थना निरत बनफ़शा सिर रख उसके चरणों पर
ब-नोश जाम-ए-सुबूही ब-नालः-ए-दफ़-ओ-चंग
ब-बोस ग़बग़ब-ए-साक़ी ब-नग़्मः-ए-नय-ओ-ऊ'द
आ कि भोरिया प्याला पी तू डफ-मृदंग की तालों पर
वेणु और तंत्री की लय पर चूम चिबुक मधुबाला का
ब-बाग़ ताज़ः कुन आईन-ए-दीन-ए-ज़र्दुश्ती
कनूँ कि लाल: बर अफ़्रोख्त़ आतिश-ए-नमरूद
उपवन में पारसी धर्म के नियमों को फिर करो नवीन
रक्त कुसुम ने खिल, नम्रूद-अग्नि को प्रकट किया अब तो
ज़े दस्त-ए-शाहिद-ए-सीमीं ए’ज़ार-ए-ई'सा-दम
शराब नोश-ओ-रिहा कुन हदीस-ए-आ'द-ओ-समूद
जिसके गोरे गाल रजत से, जीवन प्रद ई’सा सी साँस
उस प्रिय के कर से मदिरा पी, आ’द-समूद कथा को छोड़
जहाँ चू ख़ुल्द-ए-बरीं शुद ब-दौर-ए-सौसन-ओ-गुल
वले चे शवद कि दर वै न मुम्किनस्त ख़ुलूद
सोसन और गुलाबों की मधु ऋतु में स्वर्ग हुआ संसार
किंतु भला क्या लाभ कि जब संभव न हुआ अमरत्व यहाँ
शुद अज़ फ़रोग़-ए-रियाहींं चू आसमाँ गुलशन
ज़े युम्न-ए-अख़तर-ए-मैमून-ओ-ताले'अ-ए-मसऊ’द
आसमान सी हुई वाटिका गमकीली हरियाली से
हुआ आगमन शुभ तारे का, जागा जीवन का सौभाग्य
चू गुल सवार शवद बर हवा सुलैमाँवार
सहर-गह मुर्ग़ दर आयद ब-नग़्मः-ए-दाऊ'द
सुलेमान की तरह फूल जब पवन-अश्व पर हुआ सवार
गाने लगे विहग प्रातःयूँ जैसे दाऊदी संगीत
ब-दौर-ए-गुल म-नशीं बे-शराब-ओ-शाहिद-ओ-चंग
कि हम-चू दौर-ए-बक़ा हफ्तःए-बुवद मा'दूद
मधु ऋतु में मत रहो, सुरा सुंदरी और संगीत बिना
जीवन की ही तरह स्वल्प है अवधि यहाँ इन घड़ियों की
बयार जाम-ए-लबालब ब-याद-ए-आसिफ़-ए-अ'ह्द
वज़ीर-ए-मुल्क-ए-सुलैमाँ इ'माद-ए-दीं महमूद
है आसिफ़, महमूद इ’मादुद्दीन आज का देश-अमात्य
सुलेमान का, उसकी स्मृति में भरा लबालब प्याला ला
बुवद कि मज्लिस-ए-'हाफ़िज़' ब-युम्न-ए-तर्बीयतश
हर-आँचे मी-तलबद जुम्लः बा-शदश मौजूद
उसकी छ्त्र छाँह में शायद हो ‘हाफ़िज़’ की महफ़िल में
वे सारी वस्तुएँ उपस्थित, इच्छा जिनकी मन में है
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