रौशन अज़ परतवे-ए-रूयत नज़रे नीस्त कि नीस्त
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
रौशन अज़ परतवे-ए-रूयत नज़रे नीस्त कि नीस्त
मिन्नत-ए-ख़ाक-ए-दरत बर बसरे नीस्त कि नीस्त
कोई ऐसी निगाह नहीं है जो तेरे चेहरे के परतव से रौशन नहीं है
कोई ऐसी बीनाई नहीं जिस पर तेरे दर की ख़ाक का एहसान नहीं है
नाज़िर-ए-रू-ए-तु साहब-नज़रानंद वले
सिर्र-ए-गेसू-ए-तु दर हेच सरे नीस्त कि नीस्त
तेरे चेहरे के देखने वाले तो साहिब-ए-नज़र ही हैं लेकिन
कोई ऐसा सर नहीं है जिसमें तेरे गेसू का ख़याल नहीं है
अश्क-ए-ग़म्माज़-ए-मन अर सुर्ख़ बर आमद चे-अ'जब
ख़जिल अज़ कर्द:-ए-ख़ुद पर्दा-दरी नीस्त कि नीस्त
अगर मेरा चुग़ल-ख़ोर, आँसू सुर्ख़ हो कर निकला है तो क्या तअ’ज्जुब है
कोई पर्दा चाक करने वाला ऐसा नहीं है जो अपने कारनामा से शर्मिंदा नहीं है
मन अज़ीं तालेअ' शोरीदः ब-रंजम वर्नः
बहरः-मंद अज़ सर-ए-कुयत दिगरे नीस्त कि नीस्त
मैं इस परेशान नसीबा से रंजीदा हूँ वर्ना
कोई दूसरा ऐसा नहीं है , जो तेरे कूचा से बहरा-मंद नहीं है
तू ख़ुद ऐ शो'ल:-ए-रख़्शंदा चे दारी दर सर
कि कबाब अज़ हरकातत जिगरे नीस्त कि नीस्त
ऐ रौशन शो’ले ख़ुद तेरे सर में क्या ख़याल है
कोई ऐसा जिगर नहीं है, जो तेरी हरकात से कबाब नहीं है
ता-दम अज़ शाम-ए-सर-ए-जुल्फ़-ए-तू हर जा न-ज़नद
बा-सबा गुफ़्त-ओ-शनीदम सहरे नीस्त कि नीस्त
तेरी ज़ुल्फ़ की स्याही के इ’श्क़ का क़िस्सा ताकि हर जगह न फैला दे
कोई ऐसी सुब्ह नहीं है जिसमें सबा के साथ मेरी कहन सुन नहीं है
अज़ ख़याल-ए-लब-ए-शीरीन-ए-तू ऐ चश्म:-ए-नोश
गर्क़-ए-आब-ओ-अ'रक़ अकनूँ शक्करे नीस्त कि नीस्त
ऐ चश्म-ए-हयात तेरे शीरीं होंटों के ख़याल से
कोई ऐसी शकर नहीं है, जो पसीना में डूबी हुई नहीं है
मस्लहत नीस्त कि अज़ पर्द: बरूँ उफ़्तद राज़
वर्नः दर मज्लिस-ए-रिंदाँ ख़बरे नीस्त कि नीस्त
मस्लिहत नहीं है, कि राज़ पर्दे से बाहर आए
वर्ना ऐसी ख़बर कोई नहीं है, जो रिंदों की मज्लिस में नहीं है
अज़ वजूदी क़द्रम नाम-ओ-निशाँ हस्त कि हस्त
वर्नः अज़ ज़ोफ़ दर आँ-जा असरे नीस्त कि नीस्त
मेरे वजूद का सिर्फ़ इस क़दर नाम-ओ-निशान है कि वो है
वर्ना कमज़ोरी का कोई ऐसा असर नहीं है जो उस में नहीं है
शेर दर बादिय:-ए-इश्क़-ए-तू रूबाह शवद
आह अज़ीं राह कि दर वै ख़तरे नीस्त कि नीस्त
तेरे इ’श्क़ के जंगल में शेर भी लोमड़ी बन जाता है
आह! ऐसे रास्ता पर, कोई ऐसा ख़तरा नहीं है जो उस में नहीं है
नाज़ुकाँ रा सफ़र-ए-इश्क़ हराम-अस्त हराम
कि बहर-गाम दरीं रह ख़तरे नीस्त कि नीस्त
नाज़ुकों के लिए इ’श्क़ का सफ़र यक़ीनन हराम है
इसलिए कि ऐसा कोई ख़तरा नहीं है जो उस रास्ता में हर क़दम पर नहीं है
आब-ए-चश्मम कि ब-रू मिन्नत-ए-ख़ाक-ए-दर-ए-तुस्त
ज़ेर सद मिन्नत-ए-ऊ ख़ाक-ए-दरे नीस्त कि नीस्त
मेरे आँसू, जिन पर तेरे दर की ख़ाक का एहसान है
किसी दरवाज़े की ख़ाक ऐसी नहीं है जिस पर उनके सौ एहसान नहीं है
ता-ब-दामन न नशीनद ज़े-नसीमत गर्दे
सैल-ए-अश्क अज़ नज़रम बर गुज़रे नीस्त कि नीस्त
ताकि तेरे दामन पर नसीम की वजह से कोई गर्द उड़ कर न आ बैठे
कोई रास्ता ऐसा नहीं है जिस पर मेरी आँख का सैल-ए-अश्क नहीं है
न मन-ए-दिल शुद: अज़ दस्त-ए-तु ख़ूनीं जिगरम
अज़ ग़म-ए-इ'श्क़-ए-तू पुर-ख़ूँ जिगरे नीस्त कि नीस्त
मैं तबाह दिल ही तेरे हाथ से ज़ख़्मी-जिगर नहीं हूँ
कोई ऐसा जिगर नहीं है, जो तेरे इ’श्क़ के ग़म से ज़ख़्मी नहीं है
कमर कीं मन-ए-ख़स्त: चे बंदी कि ज़े-मेहर
बर मियान-ए-दिल-ओ-जानम कमरे नीस्त कि नीस्त
मुझ ख़स्ता पर कीना की कमर क्यूँ कसता है, इसलिए कि मोहब्बत का
कोई पटका ऐसा नहीं है जो मेरे दिल और जान की कमर में बंधा हुआ नहीं है
अज़ सर-ए-कु-ए-तू रफ़्तन न-तवानम जाय
वर्नः अंदर दिल-ए-बे-दिल सफ़रे नीस्त कि नीस्त
मैं एक क़दम भी तेरे कूचा से नहीं जा सकता हूँ
वर्ना बेदिल के दिल में कोई ऐसा सफ़र नहीं है, जो नहीं है
ग़ैर अज़ीं नुक्ता कि 'हाफ़िज़' ज़े-तू ना-ख़ुशनूद-अस्त
दर सरापा-ए-वजूदत हुनरे नीस्त कि नीस्त
उस नुक्ता के अ’लावा कि ’हाफ़िज़’ तुझ से नाराज़ है
ऐसा कोई हुनर नहीं है जो तेरे पूरे वजूद में नहीं है
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