सबा अगर गुज़रे उफ़्तदत ब-किशवर-ए-दोस्त
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
सबा अगर गुज़रे उफ़्तदत ब-किशवर-ए-दोस्त
बयार नफ़्हःए अज़ गेसू-ए-मुअ'म्बर-ए-दोस्त
अरी हवा जो जाओ होकर मेरे प्राण सखा के देश
उसके अम्बरवासित केशों की सुगंध तो ले आना
ब-जान-ए-ऊ कि ब-शुक्रान: जाँ बर अफ़शानम
अगर ब-सू-ए-मन आरी पयामे अज़ बर-ए-दोस्त
अगर अनुग्रह करके मुझ तक ला दोगी उसका संदेश्ह
तो इस कारण, शपथ बंधु की प्राण छिड़क दूँगा अपने
वगर चुनाँ चे दर आँ हज़रतत न-बाशद बार
बराए दीदः बिया दर ग़ुबारे अज़ दर-ए-दोस्त
अगर मीत की राज सभा के भीतर तुम न पहुँच पाओ
तो इन आँखों के अंजन को द्वार धूलि ही ले आना
मन गदा-ओ-तमन्ना-ए-वस्ल-ए-ऊ हैहात
मगर ब-ख़्वाब ब-बीनम जमाल-ओ-मंज़र-ए-दोस्त
हूँ भिखमंगा, पर उससे मिलने की इच्छा, क्या कहना!
स्वप्न लोक में पाऊँ शायद प्राण सखा की रूप झलक
दिल-ए-सनोबरीयम हम-चू बेद लरज़ानस्त
ज़े हसरत-ए-क़द-ओ-बालाए चूँ सनोबर-ए-दोस्त
चीड़ समान मीत के तन को पाने की अभिलाषा में
मेरा हृदय सनोबर देखो काँप रहा है बेंत समान
अगरचे दोस्त ब-चीज़े नमी-ख़रद मा रा
ब-आ'लमे न-फ़रोशेम मूए अज़ सर-ए-दोस्त
किसी वस्तु के तुल्य न समझे बंधु भले ही मेरा मूल्य
उसका एक केश भी दूँगा नहीं विश्व भर के बदले
चे उ'ज़्र-हा ज़े सग-ए-कू-ए-तू तवानम ख़्वास्त
अगर शबे ब-तवानेम बूद बर दर-ए-दोस्त
तेरे कूचा के कुत्ते से, मैं क्या उ’ज़्र-ख़्वाही कर सकूँगा
अगर किसी शब को, हम दोस्त के दरवाज़ा पर रह सकेंगे
चे बाशद अर शवद अज़ क़ैद-ए-ग़म दिलश आज़ाद
चू हस्त 'हाफ़िज़'-ए-मिस्कीं ग़ुलाम-ओ-चाकर-ए-दोस्त
क्या होगा यदि दुख-कारा से हो ले मुक्त हृदय उसका
जबकि दीन ‘हाफ़िज़’ मितवा का बिना दाम का चाकर है
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