Rasnidhi
Doha 24
अद्भुत गति यह प्रेम की, बैनन कही न जाइ।
दरस भूख लागे दृगन, भूखहि देह भगाइ।।
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अद्भुत गति यह प्रेम की, लखौ सनेही आइ।
जुरै कहू टूटै कहूं, कहूं गाठि पर जाइ।।
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कहनावत मै यह सुनी, पोषत तनु को नेह।
नेह लगाये अब लगी, सूखन सिगरी देह।।
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बोलन चितवन चलन में, सहज जनाई देत।
छिपत चतुरई कर कहूं, अरे हिये को हेत।।
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सुन्दर जोबन रूप जो, बसुधा मे न समाइ।
दृग तारन तिल बिच तिन्हें, नेही धरत लुकाइ।।
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