Dohe of Rasnidhi
अद्भुत गति यह प्रेम की, बैनन कही न जाइ।
दरस भूख लागे दृगन, भूखहि देह भगाइ।।
अद्भुत गति यह प्रेम की, लखौ सनेही आइ।
जुरै कहू टूटै कहूं, कहूं गाठि पर जाइ।।
सुन्दर जोबन रूप जो, बसुधा मे न समाइ।
दृग तारन तिल बिच तिन्हें, नेही धरत लुकाइ।।
बोलन चितवन चलन में, सहज जनाई देत।
छिपत चतुरई कर कहूं, अरे हिये को हेत।।
रूप नगर बस मदन नृप, दृग जासूस लगाइ।
नहनि मन कौ भेद उन, लीनौ तुरत मंगाइ।।
यह बूझन को नैन ये, लग लग कानन जात।
काहू के मुख तुम सुनी, पिय आवन की बात।।
कहनावत मै यह सुनी, पोषत तनु को नेह।
नेह लगाये अब लगी, सूखन सिगरी देह।।
पसु पच्छीहु जानही, अपनी अपनी पीर।
तब सुजान जानौं तुम्है, जब जानौ पर पीर।।
न्यारौ पैड़ौ प्रेम कौ, सहसा धरौ न पाव।
सिर के पैड़े भावते, चलौ जाय तौ जाव।।
अद्भुत बात सनेह की, सुनौ सनेही आइ।
जाकी सुध आवै हिये, सबही सुध बुध जाइ।।
प्रेम नगर में दृग बया, नोखे प्रगटे आइ।
दो मन को करि एक मन, भाव देत ठहराइ।।
आये इसक लपेट मे, सागी चसम चपेट।
सोई आया जगत मे, और भरे सब पेट ।।
सरस रूप कौ भार पल, सहि न सकै सुकुमार।
याही तै ये पलक जनु, झुकि आवैं हर बार।।
जिहि मग दौरत निरदई, तेरे नैन कजाक।
तिहि मग फिरत सनेहिया, किये गरेबां चाक।।
चसमन चसमा प्रेम कौ, पहिले लेहु लगाइ।
सुन्दर मुख वह मीत को, तब अवलोकौ जाइ।।
मन गयंद छवि मद छके, तोर जंजीरन जात।
हित के झीने तार सों, सहजै ही बंधि जात।।
सुनियत मीननि मुखलगै, बंसी अबै सुजान।
तेरी ये बंसी लगै, मीनकेत कौ बान।।
सज्जन पास न कहु अरे, ये अनसमझी बात।
मोम रदन कहुं लोह के, चना चबाये जात।।
लेउ न मजनू गोर ढिग, कोऊ लै लै नाम।
दरदवन्त कौ नेक तौ, लैन देउ बिसराम।।
हित करियत यहि भांति सों, मिलियत है वहि भांत।
छीर नीर तै पूछ लै, हित करिबे की बात।।
उड़ौ फिरत जो तूल सम, जहां तहां बेकाम।
ऐसे हरुये कौ धरयो, कहा जान मन नाम।।
कञ्चन से तन में यहां, भरो सुहाग बनाइ।
विरह आंच वापै कहो, सहो कौन विधि जाइ।।
रसनिधि वाको कहते हैं, याही ते करतार।
रहत निरन्तर जगत कौ, वाही के कर तार।।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere