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दकनी सूफ़ी काव्य
हीन दीन जात मोरी पंढरी के राया
टाल बिना लेके मामा देउल में गयापूजा करते बहान उन्ने बाहर ढकाया
नामदेव
पद
प्यारे उलट कमल मो पलट देख ले मौजा
कर याद गुरु वस्ताद पकर ले पायासुन छमा टाल ले हात ग्यान को नेजा
देवनाथ महाराज
ना'त-ओ-मनक़बत
क्या रुत्बा है ग़ौस का वो हैं शह-ए-बग़दादउस की बलाएँ टाल दें दिल से करे जो याद
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
अब बुढ़ापे में ख़ुदा-रा हमें यूँ दर से न टालतेरे टुकड़ों पे पले ग़ैर की ठोकर पे न डाल
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ना'त-ओ-मनक़बत
थाम लो हाथ हम बे-कसों का टाल दो मुश्किलें शाह-ए-बतहाना-ख़ुदा बन के आ जाओ आक़ा पार कर दो हमारा सफ़ीना