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पद
अकेला का अकेला रह्या, चल चल चल
अकेला का अकेला रह्या, चल चल चलनिरंजन से बड़ा आया ब्रह्म मवजी बड़ा निखरत है
एकनाथ
दोहरा
एक अकेला साइयाँ दुइ दुइ कहौ न कोय
एक अकेला साइयाँ दुइ दुइ कहौ न कोयबास फूल है एक ही कहु क्यूँ दूजा होय
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
सूफ़ी लेख
जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
आपुहि गुरु सौ आपहि चला। आपुहि सब औ आपु अकेला।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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राग आधारित पद
उक़दा (समस्या)- राचे सूगुर हौं धनि ताकी चेला।
राचे सूगुर हौं धनि ताकी चेला।जिन मोहि मिलया 'कंत अकेला'।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
पद
विरह -गगन तार गनत गइ रतिआ।।
जात न बनै अकेला जाना, खोजत मिलै न केहु संगतिआ।।शीवनरायन सुरति निरंतर, निरखि आपनो लीन्ह।
शिवनारायण
पद
आत्म-लीला
लोक अलोक बिच आप विराजित, ज्ञान प्रकाश अकेला।बाजी छांड़ तहां चढ़ बैठे, जिहां सिंधु का मेला।
आनंद घन
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- दूसरी दास्तान
अकेला मनहूस अश-शुला, जो मौत के डंक की अ’लामत है, आसमान की गहरी नीली ऊंचाइयों से ग़ायब था।
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(131) नारी काट के नर किया सब से रहे अकेला।चलो सखी वां चल के देखें, नार नारी का मेला।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(131) नारी काट के नर किया सब से रहे अकेला। चलो सखी वां चल के देखें, नार नारी का मेला।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
हम यह नहीं चाहते कि तू अकेला रहे और इसलिये हम भी अब ईसाई हो जायेंगे।या चू न-तवानेम दीदत हम चुनीन।