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निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
शम्स साबरी
फ़ारसी कलाम
तर्क-ए-चश्म-ए-मख़्मूरश मस्त-ए-ना-तवानीहास्तफ़ित्न: बा निगाह-ए-ऊ गर्म-ए-हम अ'नानीहास्त
साएब तब्रेज़ी
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सूफ़ी कहानी
ग़ुलाम जो मस्जिद से बाहर ना आता था - दफ़्तर-ए-सेउम
किसी अमीर का ग़ुलाम सुनक़ुर नाम गुज़रा है। एक रोज़ पिछली रात को अमीर ने सुनक़ुर
रूमी
सूफ़ी कहानी
कनआ’न का नूह के बुलाने को ना मानना - दफ़्तर-ए-सेउम
जब तक कि रूह तेरे लिए ख़ुद ना बोल उठे ज़बान ना हिला, नूह की कश्ती
रूमी
कलाम
शौक़ से ना-कामी की बदौलत कूचा-ए-दिल भी छूट गयासारी उमीदें टूट गईं दिल बैठ गया जी छूट गया
फ़ानी बदायूँनी
सूफ़ी कहानी
बादशाह का एक दरख़्त की तलाश करना कि जो उस का मेवा खाए वो ना मरे- दफ़्तर-ए-दोउम
एक अ’क़्ल-मंद ने क़िस्से के तौर पर बयान किया कि हिन्दोस्तान में एक दरख़्त है जो
रूमी
सूफ़ी कहानी
एक क़ज़वेनी का गोंदा लगवाना और सूई के कचोके की ताब ना लाना - दफ़्तर-ए-अव्वल
एक रिवायत सुनो कि अहल-ए-क़ज़वेन में रस्म है कि जिस्म के मुख़्तलिफ़ हिस्सों जैसे हाथ, बाज़ू
रूमी
सूफ़ी लेख
तज़्किरा कुतुब-ए-आलम हज़रत शाह क़ुतुब अली बनारसी
डॉ. इलतिफ़ात अमजदीख़ानक़ाह अमजदिया, स्टेशन रोड सीवान, बिहार
इल्तिफ़ात अमजदी
सूफ़ी कहानी
एक अ’रब का अपने कुत्ते की जांकनी पर वावैला मचाना मगर खाने को एक निवाला भी ना देना- दफ़्तर-ए-पंजुम
एक कुत्ते की जान निकल रही थी और एक अ’रब पास बैठा रो रहा था। आँखों
रूमी
सूफ़ी कहानी
ख़ुदा का मूसा को हुक्म देना कि मुझको उस मुँह से बुला कि जिससे कभी गुनाह ना किया हो- दफ़्तर-ए-सेउम
अगर तू दुआ’ के वक़्त ज़िक्र-ए-इलाही में मशग़ूल नहीं रहता तो जा साफ़ बातिन लोगों से
रूमी
सूफ़ी कहानी
ज़बान ना जानने की वजह से अंगूर पर चार आदमियों का आपस में झगड़ा - दफ़्तर-ए-दोउम
चार आदमी चार मुल्कों के एक जगह जम्अ’ थे।किसी ने उन चारों को एक दिरम (चांदी
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ुल्फ़-ए-लैला-ए-दो-’आलम का जिसे सौदा नहींहै वो दीवाना ख़ुदा को उस ने पहचाना नहीं
अख़तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
पीर-ए-पीराँ मीर-ए-मीराँ हज़रत-ए-ग़ौसुल-वराताजदार-ए-अहल-ए-'इरफ़ाँ हज़रत-ए-ग़ौसुल-वरा