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कलाम
दिमाग़-ओ-रूह यकसाँ चाहिएँ इंसान-ए-कामिल मेंये क्या तक़्सीम-ए-नाक़िस है ख़ुदी सर में ख़ुदा दिल में
सीमाब अकबराबादी
फ़ारसी कलाम
सूरत-ए-इंसान-ए-कामिल रा निशाँ मौला-ए-रूमसिर्र-ए-वहदत रा अतम शर्ह-ओ-बयाँ मौला-ए-रूम
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
सूफ़ी शब्दावली
सूफ़ी शब्दावली
(परमात्मा की वाणी) ׃ हक़ीक़त-ए-मुहम्मदीया, इंसान-ए-कामिल (पूर्ण मानव) अथवा मुर्शिद (गुरु).
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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
इतना न फ़रेब-ए-उल्फ़त में ये जज़्बा-ए-कामिल आ जाएहर गाम क़रीब-ए-मंज़िल हो हर गाम पे मंज़िल आ जाए
क़ातिल अजमेरी
बैत
गया से गया 'कामिल'-ए-ख़स्ता-जाँ
गया से गया 'कामिल'-ए-ख़स्ता-जाँजुनूँ की मगर दास्ताँ रह गई
कामिलुल क़ादरी
ग़ज़ल
वसवसे आते नहीं ये मर्द-ए-कामिल के क़रीबदूर है मंज़िल से वो या है वो मंज़िल के क़रीब
अब्दुल रब तालिब
नज़्म
मीलाद-उन-नबी
इमाम-उल-अम्बिया हैं नूर हैं इंसान-ए-कामिल हैंख़ुदा ख़ुद मीर-ए-मज्लिस है मोहम्मद शम-ए-महफ़िल हैं
वासिफ़ अली वासिफ़
कलाम
कहाँ हैं इंतिहा-ए-ज़ौक़-ए-कामिल देखने वालेहमें देखें कि हम हैं हुस्न-ए-बातिल देखने वाले