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नज़्म
शिकवा
क़ुमरियाँ शाख़-ए-सनोबर से गुरेज़ाँ भी हुईंपत्तियाँ फूल की झड़ झड़ के परेशाँ भी हुईं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
किस तर्ह गुज़ारूँगा मैं इक ’उम्र-ए-गुरेज़ाँइक रात तो अब मुझ से गुज़ारी नहीं जाती
ख़्वाजा शायान हसन
ग़ज़ल
न बैठ मुतमइन ऐ दिल कि है ये नादानीवो इम्तिहाँ से गुरेज़ाँ हैं इम्तिहाँ के लिए
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
हाँ मुयस्सर जो तवाफ़-ए-दर-ए-जानाँ हो जाएसिर्फ़ फ़रियाद में क्यूँ 'उम्र गुरेज़ाँ हो जाए
फ़ज़ली अमेठवी
कलाम
जो मा-सिवा से गुरेज़ाँ हो आस से क्या उल्फ़तख़ुदा से ग़ैर-ए-ख़ुदा को बताओ क्या निस्बत
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
खींच कर लाई अदम से मुझ को दुनिया की तरफ़अब कहाँ ले जाये ये उ'म्र-ए-गुरेज़ाँ देखिए
बर्याँ इलाहाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
वो तग-ओ-ताज़ कि दी तेज़ी-ए-दौराँ को शिकस्तवो तब-ओ-ताब कि साया था गुरेज़ाँ तुझ से
सूफ़ी तबस्सुम
ग़ज़ल
हुआ करती है नफ़रत भी न ये नफ़रत क़यामत केकि साया मुझ से रहता है गुरेज़ाँ कोई दिलबर में
राक़िम देहलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
गुरेज़ाँ ईं-कि चूँ गर्दद ब-जाँ अज़ चंग-ए-ऊ आहनशताबाँ आँ-कि चूँ रेज़द ब-हिर्स-ओ-शहवत अज़ वै ख़ूँ