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सलाम
सलाम ऐ मुर्शिद-ओ-रहबर शह-ए-'आली गुहर वारिससलाम ऐ मज़हर-ए-दावर शह-ए-जिन्न-ओ-बशर वारिस
यादगार शाह वारसी
गूजरी सूफ़ी काव्य
सुख़न की तारीफ़
सुख़न सेतीं गुहर मअनी के तोलें।सुख़न रोते बशर कूँ है हँसाता,
अमीन गुजराती
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सूफ़ी लेख
शाह अकबर दानापुरी और “हुनर-नामा”
बात इन शहरों की फिर रख ली हुनर वालों नेक्या किया,कुछ न किया ला’ल-ओ-गुहर वालों ने
रय्यान अबुलउलाई
ग़ज़ल
आरज़ू है मिरी आँखों सें रवाँ होएं आँसूनश्तर-ए-ग़म सें रग-ए-अब्र-ए-गुहर-बार कूँ खोल
सिराज औरंगाबादी
राग आधारित पद
मोरि बीस कटी बिन श्याम सुन्दर
चेत के संग अचेत हुएपापी जो नैनाँ ने कीनो गुहर