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बैत
तू गौहर-ए-नायाब है दुनिया के सदफ़ में
तू गौहर-ए-नायाब है दुनिया के सदफ़ मेंदुनिया में नजफ़ है मेरी दुनिया है नजफ़ में
मोहम्मद समी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
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ग़ज़ल
गिराँ हैं उन की ख़ातिर पर ज़बाँ की शोख़ियाँ मेरीइलाही बंद हो जाये शिकायत की ज़बाँ मेरी
राक़िम देहलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
गौहर-ए-मख़्ज़न-ए-असरार-ए-हमानस्त कि बूदहुक़्क़ः-ए-मेहर बदाँ मोहर-ओ-निशानस्त कि बूद
हाफ़िज़
ग़ज़ल
सफ़ा अल्मास-ओ-गौहर से फ़ुज़ूँ है तेरे दंदाँ कीकहाँ तुझ लब के आगे क़द्र-ओ-क़ीमत ला'ल-ओ-मर्जां की
मीर मोहम्मद बेदार
ग़ज़ल
सदफ़ को बह्र में गौहर, गुलों को ज़र गुलिस्ताँ मेंतमाशा फ़ज़्ल का तेरे, करिश्मा तेरी क़ुदरत का
क़तील दानापुरी
ग़ज़ल
सदफ़ को बह्र में गौहर, गुलों को ज़र गुलसिताँ मेंतमाशा फ़ज़्ल का तेरे, करिश्मा तेरी क़ुदरत का
क़तील दानापुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
मा’दिन-ए-हिल्म-ओ-हया हज़रत-ए-ग़ौसुस्सक़लैनमख़्ज़न-ए-जूद-ओ-सख़ा हज़रत-ए-ग़ौसुस्सक़लैन
अज्ञात
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ज़हे नफ़्स-ए-नबी चूँ गौहर-ए-जाँ पाक दामानेज़मीं रा बू-तुराब-ओ-अ’र्श रा ख़ुर्शीद-ए-ताबाने
शाह अकबर दानापूरी
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़ख़्र-ए-रुसुल से साहिब-ए-जूद-ओ-सख़ा से हैबुनियाद दीन-ए-हक़ की रसूल-ए-ख़ुदा से है