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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
बस कि दिल सौदा-ज़दा है ऐ शब-ए-हिज्राँ मिराशम्अ'-रू कूँ बोल जा कर हालत-ए-गिर्यां मिरा
तुराब अली दकनी
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ चारा-ए-हर-मुब्तला हज़रत सिराज-उस-सालिकीनमुश्किल-कुशा मुश्किल-कुशा हज़रत सिराज-उस-सालिकीन
मयकश अकबराबादी
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फ़ारसी कलाम
ऐ शाफ़े-ए'-तर दामनाँ-ओ- वै चारा-ए-दर्द-ए-निहाँजान-ए-दिल-ओ-रूह-ए-रवाँ या'नी शह-ए-अ'र्श आस्ताँ
अहमद रज़ा ख़ान
कलाम
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलमतिरा हुस्न दस्त-ए-ईसा तिरी याद रू-ए-मर्यम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जुनूँ से कुछ नहीं चारा करे क्या क़ैस बेचाराबरहना-पा बरहना-सर फिरे है बन में आवारा
शाह तुराब अली क़लंदर
ग़ज़ल
जैसे मरीज़-ए-ग़म कोई हो चारा-गर के सामनेमैं तुझ को देखता रहूँ तू हो नज़र के सामने
ख़्वाजा शायान हसन
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
नज़्दीक-ए-तू अज़ क़िस्सः-ए-हिज्राँ चे नवीसमवज़ शौक़-ए-दिल-ओ-दीदः-ए-गिर्याँ चे नवीसम
रूमी
शे'र
शकील बदायूँनी
कलाम
शकील बदायूँनी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी