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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
तू शाह-ए-ख़ूबाँ तू जान-ए-जानाँ है चेहरा उम्मुल-किताब तेरान बन सकी है न बन सकेगा मिसाल तेरी जवाब तेरा
साइम चिश्ती
ना'त-ओ-मनक़बत
असरार-ए-हक़ीक़त हो-हो कर असरार-ए-मोहम्मद आते हैंअनवार-ए-इलाही बन-बन कर अनवार-ए-मोहम्मद आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
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ना'त-ओ-मनक़बत
अपने चेहरा पर जो तू ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ छोड़ देसब्र का क्यूँ कर न 'आशिक़ अपने दामाँ छोड़ दे
मुंशी अब्दुल अज़ीज़
ना'त-ओ-मनक़बत
वाक़िफ़-ए-असरार-ए-दीं महबूब-ए-रब्बुल-'आलमींहादी-ए-दीन-ए-मतीं महबूब-ए-रब्बुल-'आलमीं
फ़रीद इमादी
शे'र
ढ़ूंढ़े असरार-ए-ख़ुदा दिल ने जो अंधा बन कररह गया आप ही पहलू में मुअ’म्मा बन कर
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
गौहर-ए-मख़्ज़न-ए-असरार-ए-हमानस्त कि बूदहुक़्क़ः-ए-मेहर बदाँ मोहर-ओ-निशानस्त कि बूद