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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
पर्दः-बर्दार ऐ हयात-ए-जान-ओ-दिल अफ़ज़ा-ए-मनग़म-गुसार-ओ-हम-नशीं-ओ-मूनिस-ए-शबहा-ए-मन
रूमी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
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कलाम
फ़ना होना मोहब्बत में हयात-ए-जावेदानी हैकिसी क़ातिल पे दम निकले तो लुत्फ़-ए-ज़िंदगानी है
फ़ना लखनवी
ना'त-ओ-मनक़बत
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
जान-ए-जान-ए-मुस्तफ़ा-ओ-मुर्तज़ा आने को हैसय्यदा की गोद में इक मह-लक़ा आने को है
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
हयात-अफ़्ज़ा निगार-ए-शहर-ए-सरकार-ए-मदीना हैसहाब-ए-रहमत-ए-बारी यहाँ हर दम बरसता है
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
जिन पे क़ुर्बां हो के मिलती है हयात-ए-सरमदीक़त्ल वो होते रहे और ज़िंदगी रोती रही