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ना'त-ओ-मनक़बत
अमीर बख़्श साबरी
ग़ज़ल
झुक के साग़र से गले मिलता है पैमाने की ई'दअपनी हस्ती से गुज़र जाना है मस्ताने की ई'द
बेदम शाह वारसी
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शबद
झूठा है संसारा सारा झूठा है संसारा
झुक-झुक के ये शीश नवावै बड़ा मसकरा मारामुँह का मीठा मन का खोटा दगेबाज हत्यारा
ईष्वरदास
सूफ़ी लेख
बिहार के प्रसिद्ध सूफ़ी शाइर – शाह अकबर दानापुरी
पी के हम तुम जो चले झूमते मयख़ाने सेझुक के कुछ बात कही शीशे ने पैमाने से
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
पी के हम तुम जो चले झूमते मयख़ाने सेझुक के कुछ बात कही शीशे ने पैमाने से
रय्यान अबुलउलाई
ग़ज़ल
जाओ जहाँ है साक़ी-ए-सरमस्त-ए-क़दह-नोशक्यूँ आए हुए झुक-झुक मिरी आँखों में ख़ुमारो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ग़ज़ल
शिकस्त-ए-तौबः की तक़रीब में झुक झुक के मिलती हैंकभी पैमानः शीश: से कभी शीशे से पैमानः
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
हर क़दम कैफ़ निगाह-ए-मस्त से झुक झुक गयासीख लीं पा-ए-मिज्ज़ा से लग़्ज़िश-ए-मस्ताना हम
अख़तर नगीनवी
ना'त-ओ-मनक़बत
क़दम चूमे हैं दुनिया के शहंशाहों ने झुक-झुक करबंधी देखी है जिस के सर तेरी दस्तार या साबिर