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दकनी सूफ़ी काव्य
किस्सासुल अम्बिया
उनो कूँ डोल में बन्द कर बिठा करबो छोड़े डोल कूँ कुए के अन्दर
मुहम्मद ग़ौसी
दकनी सूफ़ी काव्य
यूसुफ़ जुलेखा
लगाया आपस अज़म का याने सोल (?)सट्या उस कुएँ में तलब का सो डोल
हाशमी बीजापुरी
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सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
नैन पलक चितवन नहीं, पाथर गोल सिडौलमन पंड़ित का क्यूँ भयो बुत पर डाँवा-डोल
ज़माना
ग़ज़ल
ख़ुदा-रा यूँ न आ बालों को खोले झूमता साक़ीअरे नीयत न डाँवाँ-डोल हो जाए कहीं मेरी
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
बरस रहा है प्यार का सावन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाहडोल रहा है जिस से तन-मन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
सूफ़ी कहानी
एक मख़मूर तुर्क का गवय्ये को तलब करना- दफ़्तर-ए-शशुम
गवय्ये ने कहा कि मैंने तेरी नफ़ी की ताकि तू इस्बात को पा जाये। मैं इस
रूमी
सूफ़ी लेख
सुलूक-ए-नक़्शबंदिया - नासिर नज़ीर फ़िराक़ चिश्ती देहलवी
वुक़ूफ़-ए-क़ल्बीदिल की हिफ़ाज़त और निगरानी को कहते हैं जो ब-ग़ैर ज़िक्र के की जाए। सालिक हर-दम