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ग़ज़ल
मैं बैतुल्लाह से 'मसऊ'द' तोहफ़ा ले के आया हूँग़िलाफ़-ए-का'बा-ए-अक़दस का टुकड़ा ले के आया हूँ
मस्ऊ’द लखीमपुरी
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा साहब पर क्या कहती हैं पुरानी किताबें?
ज़िक्र-ए-ख़्वाजा मआ करामात-ए-हारूनी (ज़ब्त अजमेरी)तोहफ़ा-ए-चिश्त (अफ़्ज़ल बदायूनी)
रय्यान अबुलउलाई
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व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- दूसरी दास्तान
"सुनो," ज़रा सुस्ताकर वह बोली। "हमारे यहां का रिवाज है कि जिस लड़की का बोसा लेते
लियोनिद सोलोवयेव
ना'त-ओ-मनक़बत
तुम्हें मिदहत-सराई का मिला हस्सान ये तोहफ़ानबी के मद्ह-ख़्वानों में ’अज़ीमुल-मर्तबा तुम हो
ख़ालिद नदीम बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
मुझ से जो वाबस्ता हो उस को ये तोहफ़ा दीजिएबस फ़ना-फ़िश्शैख़ की मंज़िल पे पहुँचा दीजिए
सुलतान चिश्ती
चादर
जुलूस-ए-क़ादिरी ले कर चला है क़ादिरी तोहफ़ाये चादर ग़ौस-ए-आ'ज़म शाह-ए-जीलानी की चादर है
शकील बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
हर एक लब पर यही फ़साना दिया अदब को हसीन तोहफ़ाकलाम-ए-ख़्वाजा अमीर ख़ुसरौ कलाम-ए-ख़्वाजा अमीर ख़ुसरौ
ग़यास आग़ाज़ी
क़िस्सा
क़िस्सा चहार दर्वेश
मुबारक से यह सुन कर बोला, ‘बहुत अच्छा, मैं यह चाहता हूँ कि वह बाक़ी न