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ग़ज़ल
मुज़्तर ख़ैराबादी
फ़ारसी कलाम
ऐ शाफ़े-ए'-तर दामनाँ-ओ- वै चारा-ए-दर्द-ए-निहाँजान-ए-दिल-ओ-रूह-ए-रवाँ या'नी शह-ए-अ'र्श आस्ताँ
अहमद रज़ा ख़ान
कलाम
कहीं सोज़-ए-जिगर में वो कहीं दर्द-ए-निहाँ हो करकहीं हैं वो किसी दिल में कहीं शोर-ओ-फ़ुग़ाँ हो कर
तसद्दुक़ अ’ली असद
शे'र
शकील बदायूँनी
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मुख़म्मस
मिट गई मिट गई ‘नाज़ाँ- ख़लिश-ए-दर्द-ए-निहाँदिल है मसरूर तबीअ’त है जवानों सी जवाँ
नाज़ाँ शोलापुरी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
कर के तबाह जान-ओ-दिल दर्द-ए-निहाँ मिला मुझेआ गए पास तुम तो अब दर्द-ए-निहाँ भी कुछ नहीं
मयकश अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
नईम फ़िरोज़बादी
ग़ज़ल
वहाँ अब खींच कर लाया मुझे दर्द-ए-निहाँ मेराजहाँ का ज़र्रा ज़र्रा हो गया है जाँ-सिताँ मेरा
अज़ीज़ वारसी देहलवी
कलाम
फ़रेब-ए-आगही से वज्द में है राज़-दाँ मेराकि जैसे उस के दिल की चोट है दर्द-ए-निहाँ मेरा
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
मैं परतव-ए-अनवार-ए-ख़ुदा सिर्र-ए-निहाँ हूँ'आलम में निशाँ जिस का नहीं उस का निशाँ हूँ
औघट शाह वारसी
फ़ारसी कलाम
आँ कीस्त निहाँ दर ग़म ईं कीस्त निहाँ दर दिलदिल रक़्स-कुनाँ दर ग़म ग़म रक़्स-कुनाँ दर दिल
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
ख़ुदी का सिर्र-ए-निहाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
ख़ुदी का सिर्र-ए-निहाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाहख़ुदी है तेग़-ए-फ़साँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
अल्लामा इक़बाल
फ़ारसी कलाम
सोख़्तम सोख़्तम ईं सोज़-ए-निहाँ रा चे इ’लाजजानम आतिश-कदः शुद आतिश-ए-जाँ रा चे इ’लाज