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कलाम
सर न फोड़ें अपना दीवारों से क्यूँ कर बुल-हवसबज़्म-ए-आदा में मुझे वो आश्ना को हैं
ख़्वाजा नासिरुद्दिन चिश्ती
ना'त-ओ-मनक़बत
क़ैसर-ओ-किसरा की दीवारों में लर्ज़िश आ गईयक-ब-यक सारे सनम-ख़ानों में जुम्बिश आ गई
महबूब गौहर इस्लामपुरी
कलाम
ढूँढना है उस को ऐ ज़ाहिद तो अपने दिल में ढूँडछत में का'बे की न वो का'बे की दीवारों में है
अमीर मीनाई
कलाम
आरज़ू लखनवी
सूफ़ी कहानी
कहानी -8-ज़िन्दगी- गुलिस्तान-ए-सा’दी
दो आदमियों के बीच आग भड़काना और ख़ुद को बीच में, जला लेना अ’क़्ल की बात
सादी शीराज़ी
सूफ़ी लेख
हज़रत बंदा नवाज़ गेसू दराज़ - सय्यिद हाशिम अ’ली अख़तर
विसालगुल्बर्गा शरीफ़ में 22 साल तक रुश्द-ओ-हिदायत का सिलसिला जारी रखा।जब उ’म्र शरीफ़ 104 साल की
मुनादी
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
"मेरे दोस्तों ने वाक़ई ढंग से काम पूरा किया है," लालटेन की रोशनी में ख़ुफ़िया की
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी लेख
बाबा फ़रीद शकर गंज
उस वक़्त ख़ानक़ाह-ए-मुअ’ल्ला पर अ’जब नूर बरस रहा होता है। दिये की मद्धम रौशनी में मंज़र
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
सुल्तान सख़ी सरवर लखदाता-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
अ’जीब अ’जीब नज़राने और चढ़ावेजिस कमरे में दिन को चराग़ जलते हैं उसकी छत और दीवारों