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कलाम
तन मैं यार दा शहर बणाया दिल विच ख़ास मोहल्ला हूआण अलिफ़ दिल वस्सों कीती होई ख़ूब तसल्ला हू
सुल्तान बाहू
दोहरा
कासदा मन्न नाम ख़ुदा दा वंज मैंडे यार दी ख़िदमत ।
क़ासदा मन्न नाम ख़ुदा दा वंज मैंडे यार दी ख़िदमत ।बे परवाह पुर नाज़ दिलबर है वंज मैंडे दिलदार दी ख़िदमत ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
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सूफ़ी लेख
"है शहर-ए-बनारस की फ़ज़ा कितनी मुकर्रम"
तारीख़ की रौशनी में इस हक़ीक़त से कौन इंकार कर सकता है कि जिन मक़ासिद के
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी कहानी
शाही मुनादी सुनकर दल्क़क मस्ख़रे का गांव से शहर को दौड़ना - दफ़्तर-ए-शशुम
बादशाह-ए-तिरमिज़ के पास एक मस्ख़रा दल्क़क बादशाह का बहुत चहेता था। एक-बार रुख़्सत लेकर अपने गांव
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
हयात-अफ़्ज़ा निगार-ए-शहर-ए-सरकार-ए-मदीना हैसहाब-ए-रहमत-ए-बारी यहाँ हर दम बरसता है
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुदा के नाम से रौशन है नाम-ए-’अब्दुल्लाहकलाम-ए-मुस्तफ़वी है कलाम-ए-’अब्दुल्लाह
मयकश अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
शहर-ए-ख़्वाजा में हूँ अपना तो गुलिस्ताँ है यहीबाग़-ए-जन्नत है यही रौज़ा-ए-रिज़वाँ है यही
मोहम्मद हाशिम ख़ान
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
क्यूँ न हो हर-सम्त शहर ख़्वाजा-ए-अजमेर काहिन्द के दिल पर है क़ब्ज़ा ख़्वाजा-ए-अजमेर का
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
फ़ारसी कलाम
यार-ए-मा रा हर ज़माँ नाम-ओ-नीशाने दीगर अस्तसूरत-ओ-शक्ल-ए-ऊ रा हर-वक़्त शाने दीगर अस्त
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
रौनक़-ए-शान-ए-बे-निशाँ नाम-ओ-निशाँ में भी आजे़ब-ए-फ़िज़ा-ए-ला-मकाँ अब तो मकाँ में भी आ
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
दोहरा
किबला ख़्वाजा नूर मुहमद साहब शहर मुहारां ।
क़िबला ख़्वाजा नूर मुहमद साहब शहर मुहारां ।हिन्द सिंध पंजाब दे विच्च चा कीतो फैज़ हज़ारां ।