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कलाम
ग़ौसी शाह
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
देहु कलाली एक पियाला,ऐसा अवधू है मतवाला।।टेक।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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शबद
प्रेम का अंग - हुआ है मस्त मंसूरा चढ़ा सूली न छोड़ा हक़
'दूलन' जन को दिया मुर्शिद पियाला नाम का थक-थकवही है शाह जगजीवन चमकता देखिए लक़ लक़
दूलनदास जी
पद
गुन अजब नामः - सखी सुनि पियहि क्यूँ भावै
सखी सुनि पियहि क्यूँ भावै कुल छिन रैंनि दिन लावैजीवत जीव जौ दीजै पियाला पिरम तौ पीजै
वाजिद जी दादूपंथी
शबद
यो तो रंग धत्ताँ लग्यो ए माय
पिया पियाला नाम के रे और न रंग सोहाय'मीरा' कहै प्रभू गिरिधर-नागर काचो रंग उड़ जाय
मीराबाई
शबद
बिरह और प्रेम का अंग - अरी मैं तो नाम के रँग छकी
नाम पियाला घोंटि कै कछु और न मोहिं चहीजब डोरी लागी नाम की तब केहि कै कानि रही
जगजीवन साहेब
ना'त-ओ-मनक़बत
जो 'इश्क़-ए-मुस्तफ़ा का मो'तबर रहबर बना कोईवो दरिया-ए-करम से है पियाला ग़ौस-ए-आ'ज़म का
सय्यद अमजद हुसैन
ना'त-ओ-मनक़बत
लब पे फिर आया न हरगिज़ शिक्वा-ए-तिश्ना-लबीजब पियाला हम को कौसर का भरा उन से मिला
उवेस रज़ा अम्बर
ग़ज़ल
उम्मीद ब-दिल रिंदान-ए-तलब हाथों में पियाला थामे हैंमय-ख़ाने में उन के मर जाएँ वो आँख से मय बरसाएँ तो